अँखिया का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- रोए -रोए मनवा मोरा , अँखिया लोरा गइल; .............हाय रे विधाता तहरो मतिया हेरा गइल॥ भावार्थ: हे ईश्वर, तूने मुझे किस जन्म (के बुरे कर्म) की सजा दी है, तुम्हारा ध्यान किस ओर खो गया है?
- रोए -रोए मनवा मोरा , अँखिया लोरा गइल; .............हाय रे विधाता तहरो मतिया हेरा गइल॥ भावार्थ: हे ईश्वर, तूने मुझे किस जन्म (के बुरे कर्म) की सजा दी है, तुम्हारा ध्यान किस ओर खो गया है?
- कोरा कागज ले मैने लिखे थे आखर ढाई कागज ने धार से फिर चीर एसे लगाई लहु बहा कागज पर स्याही सा , पर कागज पर न टिकी एक बूँद आखर ढाई लिखे रह गए, पर कागज ने कलम से ली अँखिया मूँद
- चुवत अन्हरवे अँजोर हो रामा चइत महिनवा अमवा मउरि गइलें नेहिया बउरि गइलें देहियाँ टूटेला पोरे पोर हो रामा चइत महिनवा ॥१॥ उड़ि उड़ि मनवा छुवेला असमनवा बन्हल पिरितिया के डोर हो रामा चइत महिनवा ॥२॥ अँखिया न खर खाले निंदिया उचटि जाले बगिया भइल लरकोर हो रामा चइत महिनवा ॥३॥
- रतन ' फिल्म के गीत अँखिया मिला के … , ‘ मेला ' फिल्म का ये जिंदगी के मेले ' , बैजू बावरा ' का ‘ तू गंगा की मौज ' और ‘ मदर इंडिया ' का ‘ ओ गाडीवाले ' , मुगल-ए-आज़म , कोहिनूर और ताजमहल जैसे सुपरहिट फिल्मों में नौशाद ने संगीत दिया था .
- उनकी एक सुंदर , मार्मिक और विलक्षण रचना `सपना' इस हक़ीक़त को समझने में हमारी मदद कर सकती है- “सूतल रहलीं सपन एक देखलीं सपन मनभावन हो सखिया, ................ अँखिया के नीरवा भइल खेत सोनवा त खेत भइलें आपन हो सखिया, .............. केहू नाहीं ऊँच-नीच केहू के ना भय नाहीं केहू बा भयावन हो सखिया, ............. मेहनति माटी चारों ओर चमकवली ढहल इनरासन हो सखिया, बइरी पइसवा के रजवा मेटवलीं मिलल मोर साजन हो सखिया।''
- उनकी एक सुंदर , मार्मिक और विलक्षण रचना `सपना' इस हक़ीक़त को समझने में हमारी मदद कर सकती है- “सूतल रहलीं सपन एक देखलीं सपन मनभावन हो सखिया, ................ अँखिया के नीरवा भइल खेत सोनवा त खेत भइलें आपन हो सखिया, .............. केहू नाहीं ऊँच-नीच केहू के ना भय नाहीं केहू बा भयावन हो सखिया, ............. मेहनति माटी चारों ओर चमकवली ढहल इनरासन हो सखिया, बइरी पइसवा के रजवा मेटवलीं मिलल मोर साजन हो सखिया।''
- कहीं बूँदों की रिमझिम है , कहीं आँसूओं की बरसातें हैं चले जाओ ओ प्रियतमा हम, कब से अकेले हैं आकाश पर छाए श्यामल घन कहीं बिखरी उदासी है धरती है तृषित सारी कहीं अँखिया प्यासी हैं सावन बनकर के आ जाओ मन-मौसम पे छा जाओ मधु छलका के सब कहीं मदहोश सबको कर जाओ यामिनी का कहीं चकमक है कहीं ज़ोरों का घन गर्जन है मन में भी मेरे गमक गर्जन तुम संबल बनकर आ जाओ मन में बेकरारी है चहककर देख लूँ तुमको मचलकर पाँव मैं पकडूँ झूठे ही रूठ लूँ तुमसे सचमुच तुम हमें मनाओ