अकारांत का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- दक्षिण की भाषाएँ उच्चारण के धरातल पर स्वरांत भाषाएँ हैं अर्थात प्रत्येक शब्द अकारांत होने के बावजूद भी आकारांत की ध्वनि के साथ उच्चरित होता है ।
- अकारांत शब्दों ( जिनका अंत ‘ अ ' स्वर ध्वनि के साथ हो ) को आकारांत बनाकर बोलने-लिखने की बात केवल ‘ योग ' तक सीमित नहीं है ।
- बाँगरू की तरह इसमें भी अकारांत पुल्लिंग और स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों का बहुवचन रूप आँ लगाकर बनाया जाता है , जैसे : - घर से घराँ , किताब से किताबाँ आदि।
- अत : स्थानीय भाषाप्रयोगों में जो अधिकांश “ न ” के स्थान पर “ ण ” तथा अकारांत शब्दों की ओकारांत प्रवृत्ति लक्षित होती है , वह राजस्थानी प्रभाव का द्योतक है।
- अकारांत कुछ पदों की ध्वनि कभी-कभी स्पष्ट सुनाई पड़ती है , भले ही वह अत्यल्पकालिक ही हो , जैसे ‘ अन्त ' , ‘ पक्व ' तथा ‘ अल्प ' आदि में ।
- ठेठ अवधी के ऊपर दिए हुए रूपों के अतिरिक्त जायसी और तुलसी दोनों एक सामान्य अकारांत रूप भी रखते हैं जिसका प्रयोग वे तीनों पुरुषों , दोनों लिंगों और दोनों वचनों में समान रूप से करते हैं , जैसे
- सारिपुत्र प्रकरण में दुष्ट की भाषा में र् के स्थान पर ल् , तीनों ऊष्मों के स्थान पर श् तथा अकारांत संज्ञाओं के कर्ताकारक एकवचन के रूप में ए विभक्ति, ये तीन लक्षण स्पष्टत: उस भाग को मागधी सिद्ध करते हैं।
- सारिपुत्र प्रकरण में दुष्ट की भाषा में र् के स्थान पर ल् , तीनों ऊष्मों के स्थान पर श् तथा अकारांत संज्ञाओं के कर्ताकारक एकवचन के रूप में ए विभक्ति, ये तीन लक्षण स्पष्टत: उस भाग को मागधी सिद्ध करते हैं।
- संस्कृत में भाषा के कितने ही कमाल हैं , पहले पहल रामरक्षास्तोत्र के “रामो राजमणिः सदा विजयते...” से अकारांत पुल्लिंग कारक रचना का एकवचन याद करने का आइडिया जोरदार लगा था, उसी तरह एक अन्य प्रयोग जिसमें सवाल ही जवाब हैं-
- इन सर्वनामों का रूप विभक्ति और कारकचिह्न लगाने के पहले एकारांत ही रहता है ( जैसे , केहि कर , जेहि पर ) ; ब्रज भाषा या पश्चिमी अवधी के समान अकारांत ( जैसे , जाको और जा कर , तापर और तापै ) नहीं होता।