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अकार्य का अर्थ

अकार्य अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. उस दिन बर्बरीक ने झटक दिये सारे आवरण ! और अब स्वयं से सामना ! आज मुखर हो उठे युधिष्ठिर- ' बहुत अकार्य कर डाले हैं , तब विचार नहीं किया ...
  2. ‘‘ जब अकार्य में फंसे होने के साथ ही जिसके नेत्र विषयासक्ति में अंधे हो रहे हो रहे थे उस कीचक की जब द्रोपदी बुरी दृष्टि पड़ी भीमसेन ने उसका वध कर दिया।
  3. अध्ययन में यह बताने का प्रयास किया गया है कि कानून में कई खामियों तथा अकार्य क्षमता के बावजूद पचास फीसद महिलाएं गुजारा भत्ते के लिए कानूनी जंग लड़ती हैं जिसके चलते उन्हें बहुत थोड़ी राहत मिल पाती है।
  4. मुरैना 6 जून 0 7 - मुख्य चिकित्सा एवंस्वास्थ्य अधिकारी डॉ . एच . एस . शर्मा ने कार्य स्थल से अनुपस्थित रहने के कारण तीन कर्मचारियों का कार्य नहीं तो वेतन नहीं के आधार पर एक दिवस का अकार्य दिवस घोषित किया है ।
  5. इसके सिवाय जिस प्रकार वहाँ कार्याकार्य - कार्य-अकार्य - अलग बताया गया है , न कि इन्हें धर्म-अधर्म - प्रवृत्ति-निवृत्ति - के ही भीतर ले लिया है , ठीक उसी प्रकार 31 वें में भी अधर्म और धर्म तथा अकार्य एवं कार्य जुदा-जुदा लिखा है।
  6. ऐसे विकट समय पर साधारण मनुष्यों से लेकर बड़े - बड़े पंडितों को भी यह जानने की स्वाभाविक इच्छा होती है कि कार्य - अकार्य की व्यवस्था ; अर्थात कर्त्तव्य - अकर्त्तव्य धर्म का निर्णय करने के लिए कोई चिरस्थायी नियम अथवा मुक्ति है या नहीं।
  7. राम और उनके सखा-सहाय , सेवक के सारे मर्यादित कार्य के विविध रुप हैं और प्रतिपल प्रतिपक्षी पात्रों के अकार्य में राम कार्य के पृष्ठपोषक हैं - प्रकाश के पृष्ठपोषक अंधकार की भाँति, नायक के गुणों के प्रकाश, खलनायक की तरह, अच्छाइयों की महत्ता बढ़ाने वाली बुराइयों के समान।
  8. इस प्रकार जो मनुष्य इस उपनिषद को पढ़ता है , वह कृतकृत्य होता है, मदिरा पान किया हो तो भी वह पवित्र होता है सुवर्ण चुराया हो तो भी पवित्र होता है, ब्रह्माहत्या की हो तो भी पवित्र होता है, कार्य अकार्य किया हो तो भी पवित्र होता है
  9. हम जानते हैं कि वह हमारा प्रतीक है जैसा भी है , चलो ठीक है लेकिन क्या यह ठीक है यह जो लीक है कि जो अपना प्रतीक है वही ठीक है '''' राजा और ईश् वर बने रहने के करतब का यही तो मजा है कि देखो तो कार्य और चखो तो अकार्य
  10. इस प्रकार प्रपंच के बाधित होने पर अपने बुद्धि , इन्द्रिय आदि के साथ इच्छा आदि से रहित मन के शान्त ( वृत्तिशून्य ) होने पर कार्य , अकार्य , इच्छा आदिका कुछ भी प्रयोजन नहीं रहता , क्योंकि बाधित का सत्यरूप से भान न होने के कारण प्रारब्धजनित क्रियाभास से क्रिया और उसके फल का भोग नहीं होता , यह भाव है।।
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