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अधमाई का अर्थ

अधमाई अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. और जब राम भरत को यह उपदेश देते हैं कि ‘ परहित सरिस धर्म नहिं भाई , पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ' तब स्पष्टत : धर्म परोपकार का पर्याय बन जाता है।
  2. यह कैसी विडंबना थी कि ' ' परहित सरिस धरम नहिं भाई , पर पीड़ा सम नहिं अधमाई '' का मर्म उसने तो खैर नहीं समझना चाहा जिसके धर्मग्रंथ की ये पंक्तियाँ नहीं थीं , पर वह भी नहीं समझ पाया जिसके आराध्य-ग्रंथ की ये पंक्तियाँ थीं।
  3. आज गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती है , उन्होंने अपने महान काव्य में कहा था , “ परहित सरसी धर्म नहीं भाई , पर पीड़ा सम नहीं अधमाई ” अर्थात दूसरे के हित से बड़ा धर्म नहीं है एवं दूसरे को पीड़ा देने से अधिक अधर्म का कोई कार्य नहीं है।
  4. और सेवा प्रकल्पों की जानकारी प्राप्त करके मैं क्यों भागूँगा , जबकि आठ साल का था तबसे श्रीरामचरितमानस का परायण करता आ रहा हूँ, और उसमे लिखा जीवन में उतरने की जितनी बन सकें उतनी कोशिश कर रहा हूँ की - “ पर हित सरिस धर्म नहीं भाई , पर पीड़ा सम नहीं अधमाई
  5. और सेवा प्रकल्पों की जानकारी प्राप्त करके मैं क्यों भागूँगा , जबकि आठ साल का था तबसे श्रीरामचरितमानस का परायण करता आ रहा हूँ , और उसमे लिखा जीवन में उतरने की जितनी बन सकें उतनी कोशिश कर रहा हूँ की - “ पर हित सरिस धर्म नहीं भाई , पर पीड़ा सम नहीं अधमाई
  6. तुलसी ने राम का नाम लिया लेकिन सार निकाला कि ‘ सुरसर सम सब कहैं हित होई ' और पर हित में समान कोई धर्म नहीं है और ‘ परपीरा सम नाहि अधमाई ' और दूसरे का भला करने से बढ़कर कोई धर्म नहीं है और दूसरे को पीड़ा पहुंचाने के बढ़कर कोई अधर्म नहीं है .
  7. वसुधैव कुटुंबकम और सर्वे भवंतु सुखिन : …… सर्वे संतु निरामय : लेकर परहित सरिस धरम नहीं भाई , परपीडा सम नहिं अधमाई , अष् टादश पुराणेशु व् यासस् य वचनद्वयं , परोपकाराय पुण् याय , पापाय परपीडनम जैसे तमाम उदाहरण तो आपको हमारे धर्मग्रंथों में तो मिलेंगे ही साथ ही निरा निरक्षर भारतीय भी प्रकृति पूजा से लेकर चीटियों को आटा देने जैसे जो छोटे छोटे काम रोज करता है वही तो है हिंदुत् व की झलक।
  8. संपत्ति और हैसियत बढ़ाने का कोई क्या इसलिए जतन न करे कि खाली हाथ जाना है / यह कर्म भूमि है ,कर्म भी करना चाहिए ,हैसियत भी बढ़ाना चाहिए ,संपत्ति भी अर्जित करना चाहिए ,बस देखना यह है कि इसमें किसी का दिल न दुखे ,अन्याय न हो और जैसा कि आपने लिखा है श्रद्धा ,शांति ,संतुष्टि ,की भी ब्रद्धि करता रहे ,बस ख्याल यही रखना है कि -पर हित सरिस धरम नहीं भाई ,पर पीडा सम नहीं अधमाई -
  9. संपत्ति और हैसियत बढ़ाने का कोई क्या इसलिए जतन न करे कि खाली हाथ जाना है / यह कर्म भूमि है , कर्म भी करना चाहिए , हैसियत भी बढ़ाना चाहिए , संपत्ति भी अर्जित करना चाहिए , बस देखना यह है कि इसमें किसी का दिल न दुखे , अन्याय न हो और जैसा कि आपने लिखा है श्रद्धा , शांति , संतुष्टि , की भी ब्रद्धि करता रहे , बस ख्याल यही रखना है कि -पर हित सरिस धरम नहीं भाई , पर पीडा सम नहीं अधमाई -
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