अधियज्ञ का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- अंत में ' अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे ' के द्वारा यह कह दिया है कि मैं - परमात्मा - ही सभी शरीरों के भीतर अधियज्ञ हूँ।
- क्षर तथा अक्षर तत्त्व का निरूपण करते हुए कहा गया है क्षररूप प्रकृति अधिभूत है तथा पुरुष अधिदैवत है और समस्त देह में परमात्मा अधियज्ञ है * ।
- जब हम अधियज्ञ का ठीक-ठीक आशय समझ नहीं पाते तो खयाल होता है कि हो न हो , अध्यात्म आदि भी कुछ इसी तरह की अलौकिक चीजें हैं।
- अब हमें जरा सातवें अध्याय के अंत और आठवें के शुरू में कहे गए गीता के अध्यात्म , अधिभूत , अधिदैव और अधियज्ञ का भी विचार कर लेना चाहिए।
- सातवें के 29 - 30 श्लोक में और आठवें के शुरू के चार श्लोकों में भी ब्रह्म , अधियज्ञ आदि शब्द ईश्वर के ही अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं।
- सातवें के 29 - 30 श्लोक में और आठवें के शुरू के चार श्लोकों में भी ब्रह्म , अधियज्ञ आदि शब्द ईश्वर के ही अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं।
- इसलिए गीता ने आत्मज्ञान के ही सिलसिले में यहाँ अधियज्ञ शब्द को लिख के शरीर के भीतर ही यह जानना-जनाना चाहा है कि इस शरीर में अधियज्ञ कौन है ?
- इसलिए गीता ने आत्मज्ञान के ही सिलसिले में यहाँ अधियज्ञ शब्द को लिख के शरीर के भीतर ही यह जानना-जनाना चाहा है कि इस शरीर में अधियज्ञ कौन है ?
- इस अध्याय के अंत के 30 वें श्लोक में ' अधियज्ञ ' के रूप में यज्ञ का नाम लेकर प्रश्न किया है कि वह क्या है , कौन है ?
- इस अध्याय के अंत के 30 वें श्लोक में ' अधियज्ञ ' के रूप में यज्ञ का नाम लेकर प्रश्न किया है कि वह क्या है , कौन है ?