अविषय का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- इसलिये जब तक सम्पूर्ण कर्म क्षीण नही होते है तभी तक भेद दर्शी मनुष्यों की नजर में विश्व और परब्रह्म अलग अलग मालुम होते है , जहां सभी भेदों का अभाव हो जाता है जो केवल सत है और वाणी का अविषय है और खुद के द्वारा जो अनुभव किया जाता है वही ब्रह्मज्ञान कहा जाता है।
- जब बुद्धि का कार्य पूरा हो जाता है , तब वह स्वत : अपने अधिष्ठान में विश्राम पा जाती है , तब हमारा मन निर्विकल्प होकर बुद्धि में विलीन हो जाता है और इन्द्रियाँ विषयों से विमुख होकर अविषय हो जाती हैं , अर्थात् बुद्धि के सम होते ही निर्विकल्पता , जितेन्द्रियता और समता आ जाती है ।
- किन्तु विषय हुए बिनाप्रेक्ष्य होने का क्या अर्थ है ? किस प्रकार अस्मिता अविषय होकर भीप्रेक्ष्य होती है? `मैं दुःखी हूं 'में` मैं' क्या दुःख-विशिष्ट विशेष्यके रूप में उसी प्रकार विषय नहीं है जिस प्रकार `यह घट काले रंग का है 'में काले रंग से विशिष्ट घट विषय है? वास्तव में कांट ने जब उपर्युक्तप्रकार के वाक्यों में प्रयुक्त` मैं' पद को प्रातिभासिक (फिनोमिनल) अस्मिता का वाचक कहा तब उसका यही अभिप्राय था.