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अशुचि का अर्थ

अशुचि अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. अनित्य , अशुचि , दुःख , तथा अनात्मरूप तत्त्वों में क्रमशः नित्य , शुचि , सुख तथा आत्मरूप की भावना होना अविद्या है : इसी को तम कहते हैं ।
  2. अनित्य , अशुचि , दुःख , तथा अनात्मरूप तत्त्वों में क्रमशः नित्य , शुचि , सुख तथा आत्मरूप की भावना होना अविद्या है : इसी को तम कहते हैं ।
  3. जैन धर्म में भी बारह भावनाओं का महत्व है- अनित्य , अशरण , संसार , एकत्व , अन्यत्व , अशुचि , आश्रव , संवर , निर्जरा , लोक और धर्म भावना ।
  4. जैन धर्म में भी बारह भावनाओं का महत्व है- अनित्य , अशरण , संसार , एकत्व , अन्यत्व , अशुचि , आश्रव , संवर , निर्जरा , लोक और धर्म भावना ।
  5. असत्याचरण अशुचि का संग विहंग वैसी शांति और सुख नहीं दे पाते जो परमशांति गुरु वचनों में , गुरु संगति में, गुरु कृपा और सान्निध्य मंे, गुरुपदेश, गुरु स्पर्श और गुरु संदर्शन में उपलब्ध होती है।
  6. वैश्य : पंचदशाहेन शूद्रो मासेन शुद्धयति॥ 83 ॥ अर्थात् '' यदि जन्म के दस दिन के भीतर ही फिर जन्म और मरण हो जाये तो प्रथम के दस दिन पूरे होने तक ही ब्राह्मण अशुचि रहता हैं।
  7. यूं भी अशुचि स्थानों पर पड़ी स्वर्ण मुद्राओं ( इसी के आधार पर संपत्ति-प्रतीक ) को शुद्ध करके लिये जाने में किसी को भी परहेज़ नहीं हो सकता है , ऐसा मानने वाली मानव प्रजा हैं हम।
  8. यह साधना भी वैसे ही है , जैसे अनित्यता , अशुचि आदि की भावना अर्थात धारणीमन्त्र और विद्यामन्त्र का तथागत के उपदेशानुसार जप , ध्यान एवं भावना करने से पाप का क्षय तथा चित्त सन्तति शान्त होती है।
  9. यह साधना भी वैसे ही है , जैसे अनित्यता , अशुचि आदि की भावना अर्थात धारणीमन्त्र और विद्यामन्त्र का तथागत के उपदेशानुसार जप , ध्यान एवं भावना करने से पाप का क्षय तथा चित्त सन्तति शान्त होती है।
  10. योग दर्शन के प्रसिद्ध आचार्य महर्षि पतंजलि ने मनुष्य-शरीर के लिए अनित्य और अशुचि विशेषणों का प्रयोग किया है। वह लिखते हैं कि हमारा यह शरीर इस रूप में अनित्य है कि इसके हमारे पास रहने और न रहने का क
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