अश्वगन्धा का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- इसी प्रकार जायफल का उपयोग मकरध्वज वटी , विगोजेम टेबलेट, कामचूड़ामणि रस, सालम पाक, गर्भधारक योग, अश्वगन्धा पाक, फेसकेयर, मुसली पाक, बादाम पाक, कौंच पाक, चन्द्रोदय वटी, अतिसोल वटी आदि अनेक बलवीर्यवर्द्धक आयुर्वेदिक योगों के घटक द्रव्यों में किया जाता है।
- इस योग में यदि 50 ग्राम अश्वगन्धा मूल का चूर्ण और 50 ग्राम सरई ( शल्लकी ) का गोंद ( इसी मान से शक्कर बूरा की मात्रा भी थोड़ी बढ़ानी पड़ेगी ) भी मिला दिया जाय तो ऑस्टियो अर्थ्राइटिस में बहुत लाभ होगा।
- अश्वगन्धा चुर्ण १ ग्रा . हालिम चुर्ण( चन्द्रशुर) १ ग्रा. धागा मिश्रि १ ग्रा. इन सभी को मिलाकर सुबह शाम दुध के साथ ले औषधियों को लेते वक्त आप शरीर का प्रसारण करने वाले व्ययाम जैसे की साईकलिंग,रस्सा कुदना, लटकना ,आदि साथ मे करे ।
- महायोगराज गुग्ग्ल २ ५ ० मि . ग्रा . शुद्ध शिलाजीत ५ ०० मि ग्रा . तथा अश्वगन्धा चुर्ण २ ग्रा . सुबह शाम दश्मुल क्वाथ के साथ लगातार ले तथा एरण्ड तैल का उपयोग भी लाभदायक रहता है गृधसि के लिये लाभदयक आसन मै अगले लेख मे बताउंगा ।
- रोग , चिड़चिड़ापन,क्रोध,बुरी आदतों तथा अस्थिरता से मुक्ति मिलेगी.केतुयदि आपकी कुंडली में केतु,चन्द्र या मंगल युक्त होकर लग्नस्थ है, तो आप अश्विनी नक्षत्र वाले दिन गणेश जी का पूजन करने के पश्चात शुद्ध की हुई असगन्ध या अश्वगन्धा की जड़, ऊँ कें केतवे नम: मंत्र का जाप करने के पश्चात, नारंगी धागे से धारण करें.
- अश्वगन्धा चुर्ण १ ग्रा . हालिम चुर्ण ( चन्द्रशुर ) १ ग्रा . धागा मिश्रि १ ग्रा . इन सभी को मिलाकर सुबह शाम दुध के साथ ले औषधियों को लेते वक्त आप शरीर का प्रसारण करने वाले व्ययाम जैसे की साईकलिंग , रस्सा कुदना , लटकना , आदि साथ मे करे ।
- सामग्री ; ताल मखाना , मूसली , विदारीकन्द , सोठ , अश्वगन्धा , कौन्च के बीज , सेमर के फूल , बीज बन्द , शतावर , मोचरस , गोखरू , जायफल , घी में भूनी हुयी ऊड़द की दाल , , भान्ग और बन्सलोचन , यह सभी द्रव्य एक एक हिस्सा लेकर महीन से महीन चूर्ण बना लें और इस सभी वस्तुओं के चूर्ण के हिस्से के बराबर शक्कर लें और इस शक्कर को महीन से महीन पीसकर उपरोक्त चूर्ण में मिला लें /
- सामग्री ; ताल मखाना , मूसली , विदारीकन्द , सोठ , अश्वगन्धा , कौन्च के बीज , सेमर के फूल , बीज बन्द , शतावर , मोचरस , गोखरू , जायफल , घी में भूनी हुयी ऊड़द की दाल , , भान्ग और बन्सलोचन , यह सभी द्रव्य एक एक हिस्सा लेकर महीन से महीन चूर्ण बना लें और इस सभी वस्तुओं के चूर्ण के हिस्से के बराबर शक्कर लें और इस शक्कर को महीन से महीन पीसकर उपरोक्त चूर्ण में मिला लें /
- फिर भी मनुजी ने यह विचारा कि कदाचित् ऋत आदि शब्दों के अर्थ लोग व्याकरण आदि के बल से मनमाना करने लग जाये ( जैसी कि कुल्लूकभट्ट प्रभृति टीकाकारों ने फिर भी टाँग अड़ाई हैं ) , इसलिए अगले श्लोकों में आप ही उन शब्दों के अर्थ बतलाते हुए यह सूचित करते हैं कि वे ऋत और अमृत आदि नाम वैसे ही हैं , जैसे अश्वगन्धा , शालपर्णी मण्डप , ओदनपाकी और गदहपूर्णा वगैरह नाम औषधियों आदि के हैं , न कि यौगिक हैं।
- विद्यार्थियों के लिये तो यह योग बेजोड़ है- १ . रजत सिंदूर ५ ग्राम + रजत भस्म ५ ग्राम + शतपुटी अभ्रक भस्म १ ० ग्राम + स्वर्णमाक्षिक भस्म १ ० ग्राम + गिलोय सत्व १ ० ग्राम + सर्पगन्धा घनसत्व १ ० ग्राम + अश्वगन्धा घनसत्व १ ० ग्राम + शंखपुष्पी घनसत्व १ ० ग्राम + ब्राम्ही घनसत्व १ ० ग्राम + बच घनसत्व १ ० ग्राम + जटामांसी घनसत्व १ ० ग्राम इन सभी को मजबूत हाथों से कस कर घुटाई करवा लीजिये।