आकाशचारी का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- तब राजकुमार ने उसे राजा और अपनी पत्नी को दिए गए वचन के विषय में बता दिया | साथ ही यह भी बता दिया कि वचन पूरा करने पर आकाशचारी लाल रंग के सर्प द्वारा मेरी मृत्यु निश्चित है |
- तभी छत पर पहुँचकर महिम हाँफते हुए बोले , '' इंसान को अगर पंख नहीं मिले तो तिमंज़िले मकान क्यों बनवाए ? ज़मीन पर चलने वाला मनुष्य आसमान में रहने की कोशिश करे तो आकाशचारी देवता इसे कैसे सहेंगे ? .... विनय के पास गए थे ? ''
- दराजों में बंद दस्तावेज , लौटते हुए, कई अँधेरों के पार, अपरिचित शेष, चाँदनी के आरपार, बीच की दरार, टूटते दायरे, चादर के बाहर, प्यासी नदी, भटका मेघ, आकाशचारी, आत्मदाह, बावजूद, अंतहीन, प्रथम परिचय, जली रस्सी, युद्ध अविराम, दिशाहारा, बेदखल अतीत, सुबह की तलाश, घर न घाट, आखिरी पड़ाव, एक जिंदगी और, अनदेखे पुल, कलंदर, सुरंग के बाहर
- आकाश में न कोई दूत जा सकता है , न बातचीत ही हो सकती है , न पहले से किसी ने बता रखा है , न किसी से भेंट ही होती है , ऎसी परिस्थिति में आकाशचारी सूर्य , चन्द्रमा का ग्रहण समय जो पण्डित जानते हैं , वे क्यों कर विद्वान् न माने जायँ ? ॥ ५ ॥
- वह अनन्त की बात सोचता है , सान्त और सीमित की नहीं. यही कारण हैकि दर्शन-- यथार्थवादी दर्शन भी-- यथार्थ से चलकर वायवीय, आकाशचारी, वैचारिक, व्यवस्था की खोज में खो जाता है, ठीक जैसे आज के अन्तरिक्ष यानपृथ्वी से उड़कर अन्तरिक्ष, और आगे चलकर अन्तरिक्ष से भी ऊपर उड़कर उसीका अनुसन्धान करने में लग जाते हैं जिसके वहाँ पहुँचकर लोक से दूर समग्रलोक-दृष्टि प्राप्त हो सके.
- हे मेघ , विष् णु के समान श् यामवर्श तुम जब चर्मण् वती का जल पीने के लिए झुकोगे , तब उसके चौड़े प्रवाह को , जो दूर से पतला दिखाई पड़ता है , आकाशचारी सिद्ध-गन् धर्व एकटक दृष्टि से निश् चय देखने लगेंगे मानो पृथ्वी के वक्ष पर मोतियों का हार हो जिसके बीच में इन् द्र नील का मोटा मनका पिरोया गया है।
- हे मेघ , विष् णु के समान श् यामवर्श तुम जब चर्मण् वती का जल पीने के लिए झुकोगे , तब उसके चौड़े प्रवाह को , जो दूर से पतला दिखाई पड़ता है , आकाशचारी सिद्ध-गन् धर्व एकटक दृष्टि से निश् चय देखने लगेंगे मानो पृथ्वी के वक्ष पर मोतियों का हार हो जिसके बीच में इन् द्र नील का मोटा मनका पिरोया गया है।
- ये ही नहीं , पृथ्वी पर विचरने वाले ग्रामदेवता, आकाशचारी देवविशेष, जल से सम्बन्ध में प्रकट होने वाले गण, उपदेश मात्र से सिद्ध होने वाले निमन्कोटि के देवता, अपने जन्म के साथ प्रकट होने वाले देवता, कुलदेवता, माला (कण्ठमाला आदि), डाकिनी, शाकिनी, अन्तरिक्ष में विचरने वाली अत्यन्त बलवती भयानक डाकिनियाँ, ग्रह, भूत, पिशाच, यक्ष, गन्धर्व, राक्षस, ब्रह्मराक्षस, बेताल, कूष्माण्ड और भैरव आदि अनिष्टकारक देवता भी हृदय में कवच धारण किये रहने पर उस मनुष्य को देखते ही भाग जाते हैं।
- इसके पश्चात् श्री कृष्ण लीलाओं पर आधारित कत्थक नृत्य , तत्कार , उठान , हस्तक व चक्रों का कुशल-संयोजन , सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के चक्कर लगाने की गति को दर्शाते हुए आकाशचारी नृत्य , तबले के प्रश्नों का जवाब घँूघरुओं से देकर जुगलबंदी , सोलह मात्रा की त्रिताल में सम से सम तक विभिन्न तिहाइयों का प्रदर्शन तथा राजस्थान के अतिथि सत्कार को सर्वोपरि बताते हुए प्रसिद्ध लोकगीत केसरिया बालम पधारो म्हारे दे श. ........ पर कत्थक भाव-नृत्य प्रस्तुत किया।