आम्नाय का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- तारण पंथ का प्रादुर्भाव , किन परिस्थितियों में हुआ ? श्री तारण स्वामी के माता-पिता दिगम्बर जैन आम्नाय के अनुयायी थे, मामा श्री लक्ष्मण सिंघई भी दिगम्बर जैन आम्नाय के प्रमुख व्यक्ति थे।
- अर्थात ” सारे वेद ईश्वर के हि नाम का आमनन करते हैं ” इसी से वेद को आम्नाय अर्थात परमेश्वर के नाम का आमनन करने वाला यह संज्ञा भी मिली है .
- जीया त्रैलोक्य नाथ शासनम् जिन शासनम् स्वस्ति सम्वत् 1525 वर्षे चैत्र सुदी 15 मूलसंघे सरस्वती गच्छे बलाकार गणे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये आम्नाय भट्टारक श्री प्रभाचंद्र देवा ततो पट्टे भट्टारक श्री पद्मनंदी देवा भट्टारक श्रुतचंद देवा।
- प्रोफेसर महावीर सरन जैन का मत है कि जैन साहित्य की दृष्टि से दिगम्बर आम्नाय के आचार्य गुणधर एवं आचार्य धरसेन के ग्रंथों में मागधी प्राकृत का नहीं अपितु शौरसेनी प्राकृत का प्रयोग हुआ है।
- इन भिन्न मतों की विवेचना प्रायः आम्नाय भेद / पंथ भेद/दिगम्बर-श्वेताम्बर भेद रूप में की जाती है जिससे भेद- दृष्टि उत्पन्न होती है तथा अपने अपने मत एवं मान्यता के प्रति आग्रह मूलक दृष्टि का विकास होता है।
- श्वेतांबर आम्नाय में एक परंपरा 84 आगम मानती है , एक परंपरा उपर्युक्त 45 आगमों को आगम के रूप में स्वीकार करती है तथा एक परंपरा महानिशीथ ओषनिर्युक्ति, पिंडनिर्युक्ति तथा 10 प्रकीर्ण सूत्रों को छोड़कर शेष 32 को स्वीकार करती है।
- इन भिन्न मतों की विवेचना प्रायः आम्नाय भेद / पंथ भेद / दिगम्बर-श्वेताम्बर भेद रूप में की जाती है जिससे भेद- दृष्टि उत्पन्न होती है तथा अपने अपने मत एवं मान्यता के प्रति आग्रह मूलक दृष्टि का विकास होता है।
- श्वेतांबर आम्नाय में एक परंपरा 84 आगम मानती है , एक परंपरा उपर्युक्त 45 आगमों को आगम के रूप में स्वीकार करती है तथा एक परंपरा महानिशीथ ओषनिर्युक्ति, पिंडनिर्युक्ति तथा 10 प्रकीर्ण सूत्रों को छोड़कर शेष 32 को स्वीकार करती है।
- श्वेतांबर आम्नाय में एक परंपरा 84 आगम मानती है , एक परंपरा उपर्युक्त 45 आगमों को आगम के रूप में स्वीकार करती है तथा एक परंपरा महानिशीथ ओषनिर्युक्ति , पिंडनिर्युक्ति तथा 10 प्रकीर्ण सूत्रों को छोड़कर शेष 32 को स्वीकार करती है।
- घर , दुकान आदि में स्थापित श्रीयंत्र की दैनिक संक्षिप्त पूजा निम्न प्रकार से करें :- नोट :- 'मूल मंत्र' अर्थात अपनी-अपनी आम्नाय में गुरु द्वारा निर्दिष्ट त्री अक्षरी, चतुरक्षरी, पंच अक्षरी, षोडष अक्षरी मंत्र पहले बोलकर पश्चात पीछे का व्याक्यांश बोलें अथवा 'मूल मंत्र' अपनी राशि के अनुसार जान लें, इस हेतु हमने एक तालिका प्रस्तुत की है।