आहन का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- और देख के आहंगर की दुकां में तुंद हैं शोले , सुर्ख है आहन खुलने लगे कुफलों के दहाने फैला हर इक ज़ंजीर का दामन वाह, दिशा जी, पूजा जी, सुमित जी, अदा जी आप सब ने भी महफिल में खूब हाजिरी दी और बढ़िया रंग जमाया.
- बोल कि थोड़ा वक्त बहुत है बोल , कि लब आज़ाद हैं तेरे बोल, ज़बां अब तक तेरी है तेरा सुतवां जिस्म है तेरा बोल, कि जाँ अब तक तेरी है देख कि आहन-गर की दुकां में तुन्द हैं शोले, सुर्ख हैं आहन खुलने लगे कुफ्लों के दहाने फैला हर इक ज़ंजीर का दामन बोल, कि थोड़ा वक्त बहुत है ज़िस्मों ज़ुबां [...]
- बोल के लब आजाद हैं तेरे बोल जबां अब एक तेरी है तेरा सुतवा जिस्म है तेरा बोल के जां अब तक तेरी है देख के : आहंगर की दुकां में तुंद हैं शोले , सुर्ख हैं आहन खुलने लगे हैं कुफलों के दहाने फैला हर जंजीर का दामन बोल , ये : थोड़ा बहुत वक्त बहुत है जिस्म- ओ-जबां की मौत से पहले बोल , के सच जिंदा है अबतक
- बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे बोल ज़बाँ अब तक तेरी है तेरा सुतवाँ जिस्म है तेरा बोल कि जाँ अब तक तेरी है देख के आहंगर की दुकां में तुंद हैं शोले सुर्ख़ है आहन खुलने लगे क़ुफ़्फ़लों के दहाने फैला हर एक ज़ंजीर का दामन बोल ये थोड़ा वक़्त बहुत है जिस्म-ओ-ज़बां की मौत से पहले बोल कि सच ज़िंदा है अब तक बोल जो कुछ कहने है कह ले
- बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे बोल ज़बाँ अब तक तेरी है तेरा सुतवाँ जिस्म है तेरा बोल कि जाँ अब तक् तेरी है देख के आहंगर की दुकाँ में तुंद हैं शोले सुर्ख़ है आहन खुलने लगे क़ुफ़्फ़लों के दहाने फैला हर एक ज़न्जीर का दामन बोल ये थोड़ा वक़्त बहोत है जिस्म-ओ-ज़बाँ की मौत से पहले बोल कि सच ज़िंदा है अब तक बोल जो कुछ कहने है कह ले
- कारवाँ . ....लोग साथ आते गए, और कारवाँ बनता गया ! बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे बोल ज़बाँ अब तक तेरी है तेरा सुतवाँ जिस्म है तेरा बोल कि जाँ अब तक् तेरी है देख के आहंगर की दुकाँ में तुंद हैं शोले सुर्ख़ है आहन खुलने लगे क़ुफ़्फ़लों के दहाने फैला हर एक ज़न्जीर का दामन बोल ये थोड़ा वक़्त बहोत है जिस्म-ओ-ज़बाँ की …
- बोल कि अब आजाद हैं तेरे बोल , जबां अब तक तेरी है तेरा सुतवां (तना हुआ) जिस्म है तेरा बोल कि जां अब तक तेरी है देख कि आहनगर (लोहार) की दुकां में तुंद (तेज) हैं शोले, सुर्ख है आहन खुलने लगे कुफलों के दहाने (तालों के मुंह) बस ये थोड़ा वक्त बहुत है जिस्मो जबां की मौत से पहले बोल कि सच जिंदा है अब तक बोल कि जो कहना है कह के 'फैज अहमद फैज' ख्वाबे सहर
- फैज अहमद फैज की ये पंक्तियाँ दुहराने का माकूल वक्त है यह शायद- ‘‘ बोल कि लब आजाद हैं तेरे बोल जबाँ अब तक तेरी है तेरा सुतवाँ जिस्म है तेरा बोल कि जाँ अब तक तेरी है देख के आहंगर की दुकाँ में तुन्द हैं शोले सुर्ख है आहन खुलने लगे कुफलों के दहाने फैला हर इक जंजीर का दामन बोल ये थोड़ा वक्त बहुत है जिस्म-ओ-जबाँ की मौत से पहले बोल कि सच जिन्दा है अब तक बोल जो कुछ कहने हैं कह ले। ”
- बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे बोल ज़बाँ अब तक तेरी है तेरा सुतवाँ जिस्म है तेरा बोल कि जां अब तक तेरी है देख के आहंगर की दुकां में तुंद हैं शोले , सुर्ख़ है आहन खुलने लगे क़ुफ्फ़लों के दहाने फैला हर एक ज़न्जीर का दामन बोल ये थोड़ा वक़्त बहोत है जिस्म-ओ-ज़बां की मौत से पहले बोल कि सच जिंदा है अब तक बोल जो कुछ कहना है कह ले फैज ने बहुत ही निजी कविताएं भी लिखी हैं।
- विरोध तो हमको करना ही होगा , क् योंकि बकौल फैज़ अहमद फैज़ , बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे बोल ज़बां अब तक तेरी है तेरा सुतवां जिस् म है तेरा बोल कि जां अब तक तेरी है देख कि आहंगर की दुकां में तुंद हैं शोले सुर्ख हैं आहन खुलने लगे क़ुफलों के दहाने फैला हर इक ज़ंज़ीर का दामन बोल ये थोड़ा वक् त बहुत है जिस् म-ओ-ज़ुबां की मौत से पहले बोल कि सच जि़ंदा है अब तक बोल जो कुछ कहना है कह ले