इक्षुरस का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- यह अभिषेक जल , इक्षुरस, दुध, चावल का आटा, लाल चंदन, हल्दी, अष्टगंध, चंदन चुरा, चार कलश, केसर वृष्टि, आरती, सुगंधित कलश, महाशांतिधारा एवं महाअर्घ्य के साथ भगवान नेमिनाथ को समर्पित किया जाता है।
- यह अभिषेक जल , इक्षुरस, दुध, चावल का आटा, लाल चंदन, हल्दी, अष्टगंध, चंदन चुरा, चार कलश, केसर वृष्टि, आरती, सुगंधित कलश, महाशांतिधारा एवं महाअर्घ्य के साथ भगवान नेमिनाथ को समर्पित किया जाता है।
- [ 1] यह अभिषेक जल, इक्षुरस, दुध, चावल का आटा, लाल चंदन, हल्दी, अष्टगंध, चंदन चुरा, चार कलश, केसर वृष्टि, आरती, सुगंधित कलश, महाशांतिधारा एवं महाअर्घ्य के साथ भगवान नेमिनाथ को समर्पित किया जाता है।
- वे द्वीप एस प्रकार से हैं : - # जम्बूद्वीप # प्लक्षद्वीप # शाल्मलद्वीप # कुशद्वीप # क्रौंचद्वीप # शाकद्वीप # पुष्करद्वीप ये सातों द्वीप चारों ओर से क्रमशः खारे पानी, इक्षुरस, मदिरा, घृत, दधि, दुग्ध और मीठे जल के सात समुद्रों से घिरे हैं।
- इस कोश के पेज 58 और 235 में ‘ जम्बूद्वीप ' और ‘ किम्पुरुष ' का अर्थ दिया गया है : ‘‘ सप्तद्वीपों ( जम्बूद्वीप , प्लक्ष द्वीप , शालभक्ति द्वीप , इक्षुरस द्वीप , क्रौंच द्वीप , पुष्कर द्वीप , शाक द्वीप ) में से एक , लवण समुद्र से घिरा हु आ.
- इस कोश के पेज 58 और 235 में ‘ जम्बूद्वीप ' और ‘ किम्पुरुष ' का अर्थ दिया गया है : ‘‘ सप्तद्वीपों ( जम्बूद्वीप , प्लक्ष द्वीप , शालभक्ति द्वीप , इक्षुरस द्वीप , क्रौंच द्वीप , पुष्कर द्वीप , शाक द्वीप ) में से एक , लवण समुद्र से घिरा हु आ.
- पंचांग में सुमेरु के चारों ओर कपिल , शंख , वैरूप्य , चारुश्य , हेम , ऋषभ , नाग , कालंजर , नारद , कुरंग , बैंकक , त्रिकट , त्रिशूल , पतंग , निषध व शित आदि पर्वतों तथा क्षार , क्षीर , दधि , घृत , इक्षुरस , मदिर व स्वाद नाम के सात समुद्रों का जिक्र है।
- पंचांग में सुमेरु के चारों ओर कपिल , शंख , वैरूप्य , चारुश्य , हेम , ऋषभ , नाग , कालंजर , नारद , कुरंग , बैंकक , त्रिकट , त्रिशूल , पतंग , निषध व शित आदि पर्वतों तथा क्षार , क्षीर , दधि , घृत , इक्षुरस , मदिर व स्वाद नाम के सात समुद्रों का जिक्र है।
- इस प्रकार प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष द्वितीया को एक वर्ष तक चंद्र पूजन और भोजनादि करके बारहवें महीने मार्गशीर्ष की शुक्ल पक्ष द्वितीया को बालेंदु का यथापूर्वक पूजन करें और इक्षुरस ( ईख के रस ) का घड़ा , सोना , वस्त्र व अन्य उपयोगी सामग्री भोजनादि , पदार्थ तथा द्रव्य दक्षिणादि ब्राह्मणों को सम्मान पूर्वक देकर भोजन करें।