उन्मद का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- कर्पूरित , उन्मद , सुरम्य इसके रंगीन धुएँ में जानें , कितनी पुष्पमुखी आकृतियाँ उतराती हैं रंगों की यह घटा ! व्यग्र झंझा यह मादकता की ! चाहे जितनी उड़े बुद्धि पर राह नहीं पाती है .
- कर्पूरित , उन्मद , सुरम्य इसके रंगीन धुएँ में जानें , कितनी पुष्पमुखी आकृतियाँ उतराती हैं रंगों की यह घटा ! व्यग्र झंझा यह मादकता की ! चाहे जितनी उड़े बुद्धि पर राह नहीं पाती है .
- समूची राष्ट्रवादी काव्यधारा में जनता का आक्रोश , इच्छा-आकांक्षाएं , ऊर्जस्विता और भारतीय यौवन की उन्मद हुँकार यदि वास्तविकता के साथ कहीं रूपायित हुई है , तो यह केवल दिनकर की रचनाओं में ही संभव हो पाया है।
- और वह अपने ही मद से उन्मद कस्तूरी मृग की तरह , या प्लेग से आक्रान्त चूहे की तरह , या अपनी दुम का पीछा करते हुए कुत्ते की तरह , अपने ही आसपास चक्कर काटकर रह जाता ...
- इन पंक्तियों को पढ़ कर मुझे प्रकृति के चितेरे पन्त जी की पंक्तियाँ याद आती है- नीलांजन नयना , उन्मद सिन्धु सुता वर्षा यह चातक प्रिय वसना ! गुंजन जी बेहतरीन रचना के लिए आप को बधाई और भविष्य के लिए शुभकामनएं .
- इन पंक्तियों को पढ़ कर मुझे प्रकृति के चितेरे पन्त जी की पंक्तियाँ याद आती है- नीलांजन नयना , उन्मद सिन्धु सुता वर्षा यह चातक प्रिय वसना ! गुंजन जी बेहतरीन रचना के लिए आप को बधाई और भविष्य के लिए शुभकामनएं .
- यदि आपकी अनापत्ति कबूल ली जाए तब : बाबा नागार्जुन की अद्वितीय कविता ” बादल को घिरते देखा है ” में जब वे लिखते हैं नरम निदाग बाल कस्तूरी मृगछालों पर पलथी मारे मदिरारुण आखों वाले उन उन्मद किन्नर-किन्नरियों की मृदुल मनोरम अँगुलियों को वंशी पर फिरते देखा है।
- नव बसंत कल्पना के पर झुलाता दूर से नव गीत गाता गुनगुनाता फिर धरा में मुस्कुराता पास आया नव बसंत मूक प्रतिमाएं मुखर हो गा रहीं संगीत चंचल कौन रोके उन्मद लहर सा जो लहरता लहर आया मधु बसंत हो गया है क्या ना जाने ? लग रहा जैसे अंजाने आज मेरा दर्द कोई मस्तियों
- नव बसंत कल्पना के पर झुलाता दूर से नव गीत गाता गुनगुनाता फिर धरा में मुस्कुराता पास आया नव बसंत मूक प्रतिमाएं मुखर हो गा रहीं संगीत चंचल कौन रोके उन्मद लहर सा जो लहरता लहर आया मधु बसंत हो गया है क्या ना जाने ? लग रहा जैसे अंजाने आज मेरा दर्द कोई मस्तियों...
- हरी-भरी खेतों की सरस्वती लहराई मग्न किसानों के घर उन्मद बजी बधाई बधाई बजने के पहले शीत का प्रकोप भी सरस्वती की ही माया में अंकित है - प्रखर शीत के शर से जग को बेधा तुमने हरीतमा के पत्र-पत्र को छेदा तुमने शीर्ण हुई सरिताएँ साधारण जन ठिठुरे रहे घरों में जैसे हों , बागों [ … ]