उन्माद रोग का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- टैरेण्टुला 6 अथवा ऐबिसिन्थियम 3 एक्स- छिपकर दूसरों की वस्तु चुरा लेने की प्रबल इच्छा वाले उन्माद रोग में इनमें से किसी भी एक औषध का प्रयोग हितकर सिद्ध होता है।
- पूर्वजों ( पुरखों ) को उन्माद रोग रहना , गर्मी रोग , मस्तिष्क या मेरुदण्ड की यान्त्रिक बीमारियां , शरीर में गहरी चोट लगना , अनुचित शिक्षा , हमेशा भयानक घटनाओं वाले उपन्यास पढ़ना आदि इसके गौंण कारण हैं।
- सल्फर 30 , 1 एम- सिर का गरम तथा पाँव का ठंडा होना , भ्रांत विश्वास , धर्मोन्मत्तता , अहंकार , कलहप्रियता , गंदा रहना एवं सभी पदार्थों में दुर्गंध आना- इन लक्षणों वाले पुराने उन्माद रोग में हितकर है।
- चंद्रमा ( कर्क ) : -यह बाए नेत्र के साथ ह्रदय का कारक है चंद्रमा के प्रभाव से हृदयघात , जलोदर , नेत्र पीडा , एवं विचलन के कारन उन्माद रोग होता है कालपुरूष में यह ह्रदय में स्थित है
- - ( ब ) उन्माद रोग ( मेनिया ) - -सभी प्रकार के मानसिक रोग ( साइको-सोमेटिक ) - -अवसाद ( डिप्प्रेसन ) , तनाव ( टेन्शन ) , एल्जीमर्श ( बुढापा का उन्माद ) , विभ्रम ( साइज़ोफ़्रीनिया ) आदि।इसके लिये यज़ुर्वेद का श्लोक है- “ क्षौर समिद्धोमादुन्मादोदि विनश्यति ॥ ” -क्षौर व्रक्ष की समिधा के हवन से उन्माद रोग नष्ट होते है।
- - ( ब ) उन्माद रोग ( मेनिया ) - -सभी प्रकार के मानसिक रोग ( साइको-सोमेटिक ) - -अवसाद ( डिप्प्रेसन ) , तनाव ( टेन्शन ) , एल्जीमर्श ( बुढापा का उन्माद ) , विभ्रम ( साइज़ोफ़्रीनिया ) आदि।इसके लिये यज़ुर्वेद का श्लोक है- “ क्षौर समिद्धोमादुन्मादोदि विनश्यति ॥ ” -क्षौर व्रक्ष की समिधा के हवन से उन्माद रोग नष्ट होते है।
- हायोसायमस 1 , 3 , 200 - हंसने-गाने की तीव्र इच्छा , उसके साथ ही थोड़ा प्रलाप , अधिक बोलने की इच्छा , कभी-कभी चुप रह जाना , नंगे होकर निर्लज्ज भाव से गुप्तांगों का प्रदर्शन , कामोन्माद , कभी देवताओं की प्रार्थना करना , कभी अपनी मृत माता , बहन और पत्नी से बातें करने लगना , केवल एक ही विषय का पागलपन आदि लक्षणों वाले नए उन्माद रोग में यह औषध बहुत लाभ करती है।