कमासुत का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- यह एक सच्चाई है कि कमासुत ( बड़ा हो या छोटा ) अपने माता-पिता का अधिक स्नेह पाता है , यद्यपि खान-पान संबंधी उस प्रकार के भेदभाव की मुझे जानकारी नहीं है जिसका ज़िक्र पोस्ट में किया गया है।
- जिन प्यारे-प्यारे कमासुत बंदों ने कभी बिना किसी ठोस फायदे के आंदोलन के लिए अपने पसीने की एक बूंद भी न खर्ची हो , पता नहीं कैसे वे ही महत्वपूर्ण मंचों पर आंदोलन का प्रतिनिधित्व करते पाए जाते थे !
- पाँच छः साल के भीतर मालिक के दिए दो कट्ठे और अपने पास पहले से दो कट्ठे जमीन को ही उस कमासुत ( मेहनती ) औरत ने सोना बना लिया था और एक जून खाने लायक मडुआ मकई का बंदोबस्त कर ही लेती थी .
- औरत अभी पूरा पठ्ठी थी और उसे मर्द की जरूरत भी थी , उससे शादी करने से मुआबजे के उसके पैसे, मेरे हाथ में आने के साथ साथ, एक कमासुत पठ्ठी मेरे कब्जे में आ गई थी बोलो मेरे लिए यह कोई घाटे का सौदा था क्या?
- लड़की सुन्दर , सुशील , घरेलु , कामकाजी साथ ही सर्व गुण संपन्न होनी चाहिए , वही लड़का सिर्फ कमासुत हो तो काम बन जाता है ! क्यों ? लड़कों का सुशील , घरेलू , कामकाजी और सर्वगुण सम्पन्न होना ज़रूरी क्यों नहीं ? नहीं … .
- इसलिए आज भी जब कभी बेगार का काम करने वालों की जरूरत पड़ती है तो सबसे पहले कमासुत ( मेहनतकश) बुल्कीवाली को ही याद किया जाता है.ऐसा नही है कि बुल्कीवाली यह सब समझती नही, पर रणविजय मालिक आज भी जो इज्जत उसे देते हैं,उसके आगे वह इन बातों को नही लगाती.
- हाँ दो बातें जो वे नही भूले हैं वो ये कि , उन्होंने कितना कुछ बुल्कीवाली को दिया था और दूसरी ये कि बुल्कीवाली सी कमासुत उनकी तमाम आसामियों में एक भी आसामी ( जिन्हें जमींदार अपनी जमीन पर झोंपडा डाल रहने की इजाजत देते हैं ) नही . उन्होंने बुल्कीवाली को जो धन मान दिया था , उसके बदले उसपर अपना विशेष हक समझते हैं .
- युग युग जियो डाकिया भैया नाम से 1956 में प्रकाशित अनिल मोहन की यह कविता इस संदर्भ में उल्लेखनीय है- युग-युग जियो डाकिया भैया , सांझ सबेरे इहै मनाइत है..हम गंवई के रहवैयापाग लपेटे,छतरी ताने,काँधे पर चमरौधा झोला,लिए हाथ मा कलम दवाती,मेघदूत पर मानस चोलासावन हरे न सूखे काति,एकै धुन से सदा चलैया....शादी,गमी,मनौती,मेला,बारहमासी रेला पेलापूत कमासुत की गठरी के बल पर,फैला जाल अकेलागांव सहर के बीच तुहीं एक डोर,तुंही मरजाद रखवैया
- जबकि तार , अपशकुन की तरह सवार होकर आते थे , डाकमुंशी की साइकिल पर दुनिया को मुट्ठी में कर लेने का मुहावरा , अभी उतरा नहीं था लोगों की हथेलियों में डाकमुंशी ही बाँच दिया करते थे ख़त , गाँव की सबसे बूढ़ी औरत के लिए और जवाब भी लिख दिया करते थे उसके कमासुत के लिए जो कहीं धनबाद या रानीगंज से उसके लिए , भेजना नहीं भूलता था मनीऑर्डर