कसम खाना का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- मुझे बचपन का दोस्तों के बीच हर बात पर कसम खाना याद आ गया है - वैसे एक बात बता , तू चाहती है कि मेरा रिश्ता इस करतार सिंह की सिलाई-कढ़ाई करने और तकिये के गिलाफ काढ़ने वाली अनजान लड़की से हो जाये।
- बुखारी -जिल्द 3 किताब 48 हदीस 844 इन हदीसों से सिद्ध होता है कि अल्लाह के अतिरिक्त किसी की कसम खाना शिर्क है , चाहे कोई अल्लाह के घर काबा की कसम भी खाए वह मुशरिक माना जायेगा , और मर कर जहन्नम जायेगा .
- कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनको कसम खाना भी नहीं आता दिल्ली वाले फ़ेसबुक स्टार राजीव तनेजा इनमें से एक हैं सौगंध राम की खाऊं कैसे ? वे लिखते हैं अपनी कविता में कारस्तानी कुछ बेशर्मों की शर्मसार है पूरा इंडिया , अपने में मग्न बेखबर हो ?
- गिरिजा - जहां तक जल्द हो सके मैं गुरुदक्षिणा के बोझ से हलका किया जाऊं क्योंकि इसके लिए मैं जोश में आकर बहुत बुरी कसम खा चुका हूं , यद्यपि गुरुजी मना करते थे कि तुम कसम न खाओ तुम्हारे जैसे जिद्दी आदमी का कसम खाना अच्छा नहीं है !
- बल्कि सही बातों पर भी ज़्यादा कसम खाना भी अनुचित है , जैसा कि अबू क़तादा (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल को फरमाते हुए सुना ” बेचने और खरीदने में ज़्यादा कसम खाने से बचो, बैशक वह समान को समाप्त करता है और बरकत को मिटाता है ” (सही मुस्लिम)
- कायर पाकिस्तानी नही हुमलोग है नही तो पाकिस्तानी का क्या जुरत की किसी हिन्दुस्तानी का सिर काट दे हम उन फ़ौजी भाई के साथ है जो भूख हर्ताल पर है ह्मे भी कसम खाना चाहिए की जब तक उन पाकिस्तानियो से बदला नही लिया जाता हम चुप नही बैठेगें जय हिंद जय भारत
- अब सनी देओल क्या करेगा ? जी हाँ आप सोच भी नहीं सकते, वह अपना हाथ उस पिलर से हटाकर पिलर को अपनी पीठ पर टिका लेता है और दोनों गले मिलते हैं, और सनी भाई रोटी के साथ गाँव की कसम खाना नहीं भूलता.... है ना आँसू लाने वाला धाँसू सीन.... अब अगला सीन..
- बल्कि सही बातों पर भी ज़्यादा कसम खाना भी अनुचित है , जैसा कि अबू क़तादा ( रज़ी अल्लाहु अन्हु ) से वर्णन है कि रसूल को फरमाते हुए सुना “ बेचने और खरीदने में ज़्यादा कसम खाने से बचो , बैशक वह समान को समाप्त करता है और बरकत को मिटाता है ” ( सही मुस्लिम )
- अब सनी देओल क्या करेगा ? जी हाँ आप सोच भी नहीं सकते , वह अपना हाथ उस पिलर से हटाकर पिलर को अपनी पीठ पर टिका लेता है और दोनों गले मिलते हैं , और सनी भाई रोटी के साथ गाँव की कसम खाना नहीं भूलता .... है ना आँसू लाने वाला धाँसू सी न. ... अब अगला सी न. .
- क़सम खाना उस समय यानि आज से लगभग 1430 वर्ष पूर्व भी अरब में बेहद पसंद किया जाता था , कुरआन उस स्थान की भाषा में आ रहा था तो उनके रिवाज का खयाल रखा गया, आज यह पूरे विश्व का रिवाज, आदत बन चुकी है, यहां तक की कोर्ट में क़सम खाये बगैर आपकी बात नहीं सुनी जायेगी, यकीं और विश्वास को बढाने के लिए अपनी प्यारी चीज की कसम खाना विश्वास को बढा देता है,