कादो का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- भादो के किसी गीत को याद करने की कोशिश में सिर्फ़ एक देहाती दोहा याद आया , जो गली से गुज़रते हाथी को छेड़ने के लिए हम बचपन में गाते थे- 'आम के लकड़ी कादो में, हथिया पादे भादो में.'
- प्रश्नावली और साक्षात्कार विधि में मिले हुए उत्तरोंके इस अंतरका मुख्य कारण यह है कि सभ्य समाज में साधारणतया एक स्त्री कादो पुरूषों से प्रेम सम्बन्ध रखना उचित नहीं माना जाता और इसलिये होते हुएभी उत्तरदाता के मुँह से नहीं ही निकलता है .
- इन शब्दों की आवाज़ में साहित्यिक या वैचारिक क्लिष्टता नहीं है , न निवेदन है , बल्कि अपनी पृष्ठभूमि की गर्भिणी गंगा के कीचड़ - कादो से सने ये शब्द असहज उच्चार करते हुए सीधे - सीधे मुँह पर चीख रहे हैं .
- भादो के किसी गीत को याद करने की कोशिश में सिर्फ़ एक देहाती दोहा याद आया , जो गली से गुज़रते हाथी को छेड़ने के लिए हम बचपन में गाते थे- ' आम के लकड़ी कादो में , हथिया पादे भादो में . '
- पुकारेउल्फ़त मेरी जीती अनाड़ी पिया हारेमु : आएगा रे मजा रे मजा अब जीत-हार कादो : जे हम-तुम चोरी ...मु : घूँघट में से मुखड़ा दीखे अभी अधूराआ बैंया में आजा मिलन तो हो पूराल : ई मिलना तो नहीं तो नहीं कुछ एक बार काजे हम-तुम चोरी ...
- या फिर इसलिए कि भादो का तुक कादो से मिलता है ? भादो के किसी गीत को याद करने की कोशिश में सिर्फ़ एक देहाती दोहा याद आया, जो गली से गुज़रते हाथी को छेड़ने के लिए हम बचपन में गाते थे- 'आम के लकड़ी कादो में, हथिया पादे भादो में.'
- या फिर इसलिए कि भादो का तुक कादो से मिलता है ? भादो के किसी गीत को याद करने की कोशिश में सिर्फ़ एक देहाती दोहा याद आया, जो गली से गुज़रते हाथी को छेड़ने के लिए हम बचपन में गाते थे- 'आम के लकड़ी कादो में, हथिया पादे भादो में.'
- देखो लल्लू भाई अर्रर्र माफ़ करना भइये लालू साहब , इ सब पचरा तुम भी बूझता ही होगा पर एक ठो बतिया साफ-साफ बताय दें पहिले तुम बिहार में भंइसी का सींग पकड़ के चढ़ जाता था आ चाहे जो भी आहे-माहे करता था ऊ त ठीक था, पर अब तुम हो गिया है रेल मंतरी अओर ओ भी माननीय रेलमंत्री, अब इहाँ न भंइस है न बिहार बला कादो.
- उनकी कृतियों और आंचलिकता पर खूब लिखा जा चुका है , लेकिन मैं कभी-कभी सोचता हूँ कि रेणु के गाँव में इस कालजयी रचानाकार की मौजूदगी अब किस रूप में है … जिस खेत में बारिश के दौरान वे कादो ( धान की रोपाई से पहले खेत को गिला किया जाता है ) में अपने पाँव फंसाया करते थे और कहते थे कि धान की खेती का कुछ अलग ही मजा होता है , अब उन्हीं के गाँव में , उन्हीं के खेत में सबकुछ बदल चुका है .
- जो हो , अंदर फैलता चढ़ा चले, है कुछ वैसा बड़ा लेकिन नशीला कारोबार, भले प्रकट झींकना, चूल्हे पर उबलना, तपती रेत में गिरे जलना और बरसाती कादो में लिथड़ाये रगड़ना दीखता हो, उससे आगे तो मामला लजाये और उन लजाइनों में लहलहाये की है, गर्वीले पतंग की तरह ऊपर ऊंचा चमकते और सफ़ेद तश्तरी पर अनार के दानों-सा ललियाये की है, होंठ पर होंठ धरने की लरज़ाहटों, और ऐंठ से बिजलियों के दमकने के ख़ूरंदेज किस्से हैं, कांपती कौंध गई सी शायरी है, अंतरंग के सुनहलों की सुरभरी आह, डायरी है..