चढ़ान का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- जब वे अपने करियर के चढ़ान पर थक जाती थीं तो अब उतरान पर क्या गुल खिला लेंगी ? दूसरी तरफ अमिताभ हैं जिन्हें ब्रिटिश ब्रोडकास्टिंग कारपोरेशन ( बी . बी . सी . ) ने सहस्राब्दी का सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मी नायक करार दिया .
- ! जो तुम आज हो वो कल नहीं होगे …आज उत्थान चढ़ रहे होकल ढलान भी उतरोगे …उन्मत्त हो आज , पर भूल ना जानाजो ढलान पर हैंकुछ समय पहले उत्थान पर थे …यही खेल है … यही क्रम है …सदा चढ़ान की कामनामात्र एक भ्रम है …
- और चढ़ान जहाँ से शुरू होती थी , वहाँ उनका छोटा पीला लकड़ी का घर , अपने छोटे फूलों के संस् तरणों के आकर्षक लदाबों के साथ , दो विशाल हिकरी के ; अखरोट के जैसेद्ध पेड़ों के बीच बेहद तहजीब से अपनी जगह पर बदस् तूर बना हुआ था।
- ख़बर है ? क् योंकि बहुत बार दिन चढ़ आता है , जलप् लावन की चढ़ान चढ़ती चलती है , तक़लीफ़ और गंद की गलाजत चढ़ती चली जाती है , तब प्रियदर्शन भगवान की वत् सल करुणप्रियता के दर्शन नहीं , माताराम चौबे का लघु-क्षुद्र ब्राह्मणत् व दर्शित होता है ..
- भूख और प्यास से एक बार वश में आ जाने पर उन्हें सीधी चढ़ान में घसीटा जाता , और उनके सींगों को एक पालतू पशु की सींग से बांध दिया जाता, उस पुराने बधिया पशु (या बैल) को पता होता था कि भोजन और पानी के साथ पशुओं का बाड़ा कहां स्थित है.
- भूख और प्यास से एक बार वश में आ जाने पर उन्हें सीधी चढ़ान में घसीटा जाता , और उनके सींगों को एक पालतू पशु की सींग से बांध दिया जाता, उस पुराने बधिया पशु (या बैल) को पता होता था कि भोजन और पानी के साथ पशुओं का बाड़ा कहां स्थित है.
- ! जो तुम आज हो वो कल नहीं होगे … आज उत्थान चढ़ रहे हो कल ढलान भी उतरोगे … उन्मत्त हो आज , पर भूल ना जाना जो ढलान पर हैं कुछ समय पहले उत्थान पर थे … यही खेल है … यही क्रम है … सदा चढ़ान की कामना मात्र एक भ्रम है …
- आ , कि तू, मैं दूरियों को साथ ले चलें आ, कि तू, मैं बंधनों को बांधकर चलें क्या हुआ जो पंथ पर धुएँ का आवरण किन्तु कुछ भी हो कहीं रुके-थके नहीं लगन कि हर किसी ढलान पर कि हर किसी चढ़ान पर कि एक साँस एक डोर से कि एक साथ एक छोर से तेरी-मेरी जिन्दगी की प्रीत एक है तेरी-मेरी जिन्दगी का गीत एक है ::
- पहाड़ी चट्टानों को चढ़ान पर चढ़ाते हुए हज़ारों भुजाओं से ढकेलते हुए कि जब पूरा शारीरिक ज़ोर फुफ्फुस की पूरी साँस छाती का पूरा दम लगाने के लक्षण-रूप चेहरे हमारे जब बिगड़ से जाते हैं - सूरज देख लेता है दिशाओं के कानों में कहता है - दुर्गों के शिखर से हमारे कंधे पर चढ़ खड़े होने वाले ये दूरबीन लगा कर नहीं देखेंगे - कि मंगल में क्या-क्या है ! !
- पहाड़ों की चढ़ाई और ढलान के मस्त कर देने वाले आलम से निकल जो मानो चुपके से समझाईश देता था रोज साथ चलते चलते- जिन्दगी के उतार और चढ़ाव को खुशी खुशी झेल नित नई सीख लेने को - शुरु में उस चढ़ान से कोफ्त भी होता- थकान भी होती और सांस भी फूलती मगर इस तसल्ली के साथ कि चलो , अभी चढ़ान है तो क्या- शाम लौटते में ढलान होगी ...