चमरौधा का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- एक महाशय , जिनके सिर पर पंजाबी ढंग की पगड़ी थी , गाढ़े का कोट और चमरौधा जूता पहने हुए थे , आगे बढ़ आये और नेतृत्व के भाव से बोले-महायाय , इस बैंक के फेलियर ने कितने ही इंस्टीट्यूशनों को समाप्त कर दिया।
- ' बिवाई पड़े पांवों में चमरौधा जूता , मैली-सी धोती और मैला ही कुरता , हल की मूठ थाम-थाम कर सख् त और खुरदुरे पड़ चुके हाथ और कंधे पर अंगोछा , यह खाका ठेठ हिन् दुस् तानी का नहीं जनकवि अदम गोंडवी का भी है।
- पंडितजी का वेश बदल चुका है-एक मैली फटी धोती , कुर्ता तथा चमरौधा जूता पहने , हाथ में लाठी लिए खेतों की रखवाली कर रहे हैं , घास उखाड़ रहे हैं , छांटी छांट रहे हैं , दंवरी हांक रहे हैं , सिर पर बोझा ढो रहे हैं , फिर आधा पेट खाकर सो जा रहे हैं।
- उपन्यासकार ने कई प्रकार के जूतों का वर्णन किया है , जैसे चट्टी चमरौधा , चटपटिया , पंप जूता , बूट , नारी , मलेटरी बाला जूता , कपरहवा जूता , का बयान करेते-करते चाँदी के जूते पर आ जाता है और उसकी महिमा का गुणगान कराते हुये कहता है - ” मगर जो मजा चांदी के जूते में है वह किसी जूते में नहीं।
- मुझे पिता के चमरौधे जूते की स्मृति है वे गाँव से ढाई कोस दूर मोचियों के गाँव से लाते थे , चमरौधा जूता उसमें डालते थे सरसों का तेल ताकि मुलायम हो जाए चमरौधे जूते चलने में कोई परेशानी न हो , चमरौधा जूता , पहनने के शुरु में उन्हे काटता था वे बताते थे चमरौधा जूता नहीं मरे जानवर के दाँत हमे काट रहे हैं
- मुझे पिता के चमरौधे जूते की स्मृति है वे गाँव से ढाई कोस दूर मोचियों के गाँव से लाते थे , चमरौधा जूता उसमें डालते थे सरसों का तेल ताकि मुलायम हो जाए चमरौधे जूते चलने में कोई परेशानी न हो , चमरौधा जूता , पहनने के शुरु में उन्हे काटता था वे बताते थे चमरौधा जूता नहीं मरे जानवर के दाँत हमे काट रहे हैं
- मुझे पिता के चमरौधे जूते की स्मृति है वे गाँव से ढाई कोस दूर मोचियों के गाँव से लाते थे , चमरौधा जूता उसमें डालते थे सरसों का तेल ताकि मुलायम हो जाए चमरौधे जूते चलने में कोई परेशानी न हो , चमरौधा जूता , पहनने के शुरु में उन्हे काटता था वे बताते थे चमरौधा जूता नहीं मरे जानवर के दाँत हमे काट रहे हैं
- मुझे पिता के चमरौधे जूते की स्मृति है वे गाँव से ढाई कोस दूर मोचियों के गाँव से लाते थे , चमरौधा जूता उसमें डालते थे सरसों का तेल ताकि मुलायम हो जाए चमरौधे जूते चलने में कोई परेशानी न हो , चमरौधा जूता , पहनने के शुरु में उन्हे काटता था वे बताते थे चमरौधा जूता नहीं मरे जानवर के दाँत हमे काट रहे हैं
- मुझे पिता के चमरौधे जूते की स्मृति है वे गाँव से ढाई कोस दूर मोचियों के गाँव से लाते थे , चमरौधा जूता उसमें डालते थे सरसों का तेल ताकि मुलायम हो जाए चमरौधे जूते चलने में कोई परेशानी न हो , चमरौधा जूता , पहनने के शुरु में उन्हे काटता था वे बताते थे चमरौधा जूता नहीं मरे जानवर के दाँत हमे काट रहे हैं
- युग युग जियो डाकिया भैया नाम से 1956 में प्रकाशित अनिल मोहन की यह कविता इस संदर्भ में उल्लेखनीय है- युग-युग जियो डाकिया भैया , सांझ सबेरे इहै मनाइत है..हम गंवई के रहवैयापाग लपेटे,छतरी ताने,काँधे पर चमरौधा झोला,लिए हाथ मा कलम दवाती,मेघदूत पर मानस चोलासावन हरे न सूखे काति,एकै धुन से सदा चलैया....शादी,गमी,मनौती,मेला,बारहमासी रेला पेलापूत कमासुत की गठरी के बल पर,फैला जाल अकेलागांव सहर के बीच तुहीं एक डोर,तुंही मरजाद रखवैया