चित्रकाव्य का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- दृश्यों की नाटकीयता , तदनुरूप शब्द-संयोजन एवं चुटीले वाद-संवादों के द्वारा प्रसंग के सभी अंश नेत्रों के समक्ष विविध चित्रावलियाँ प्रस्तुत कर देते हैं- मन उनमें चित्रकाव्य सा रम सा जाता है।
- संगीत की पुस्तक , नायिकाभेद, जैन मुनियों के चरित्र, कृष्णलीला के फुटकल पद्य, चित्रकाव्य इत्यादि के अतिरिक्त इन्होंने 'जंगनामा' नामक ऐतिहासिक प्रबंध काव्य लिखा जिसमें फर्रुखसियर और जहाँदारशाह के युद्ध का वर्णन है।
- वैदेहीशविलास , कोटिब्रह्मांडसुंदरी, लावण्यवती, प्रेमसुधानिधि, अवनारसतरंग, कला कउतुक, गीताभिधान, छंतमंजरी, बजारबोली, बजारबोली, चउपदी हारावली, छांद भूषण, रसपंचक, रामलीलामृत, चौपदीचंद्र, सुभद्रापरिणय, चित्रकाव्य बंधोदय, दशपोइ, यमकराज चउतिशा और पंचशायक प्रभृति उनकी कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं।
- संगीत की पुस्तक , नायिका भेद, जैन मुनियों के चरित्र, कृष्णलीला के फुटकल पद्य, चित्रकाव्य इत्यादि के अतिरिक्त इन्होंने 'जंगनामा' नामक ऐतिहासिक प्रबंध काव्य लिखा जिसमें फर्रुखसियर और जहाँदारशाह के युद्ध का वर्णन है।
- चित्रकाव्य वह आलंकारिक काव्य है जिसके चरणों की रचना ऐसी युक्ति से की गई हो कि वे चरण किसी विशिष्ट क्रम से लिखे जाने पर कमल , खड़ग, घोड़े, रथ, हाथी आदि के चित्रों के समान बन जाते हों।
- संगीत की पुस्तक , नायिकाभेद , जैन मुनियों के चरित्र , कृष्णलीला के फुटकल पद्य , चित्रकाव्य इत्यादि के अतिरिक्त इन्होंने ' जंगनामा ' नामक ऐतिहासिक प्रबंध काव्य लिखा जिसमें फर्रुखसियर और जहाँदारशाह के युद्ध का वर्णन है।
- संगीत की पुस्तक , नायिकाभेद , जैन मुनियों के चरित्र , कृष्णलीला के फुटकल पद्य , चित्रकाव्य इत्यादि के अतिरिक्त इन्होंने ' जंगनामा ' नामक ऐतिहासिक प्रबंध काव्य लिखा जिसमें फर्रुखसियर और जहाँदारशाह के युद्ध का वर्णन है।
- यद्यपि अभी तक इनका ' जंगनामा ' ही प्रकाशित हुआ है जिसमें फर्रुखसियर और जहाँदार के युद्ध का वर्णन है , पर स्वर्गीय बाबू राधाकृष्णदास ने इनके बनाए कई रीतिग्रंथों का उल्लेख किया है , जैसे नायिकाभेद , चित्रकाव्य आदि।
- यद्यपि अभी तक इनका ' जंगनामा ' ही प्रकाशित हुआ है जिसमें फर्रुखसियर और जहाँदार के युद्ध का वर्णन है , पर स्वर्गीय बाबू राधाकृष्णदास ने इनके बनाए कई रीतिग्रंथों का उल्लेख किया है , जैसे नायिकाभेद , चित्रकाव्य आदि।
- इसमें दो खंड , १५ तरंग, ६०० पृष्ठ और लगभग २,००० छंद हैं जिसमें लक्षण ग्रंथों की परिपाटीविहित पद्धति पर ही साहित्यिक लक्षण, काव्यलक्षण, काव्यकारण, काव्यप्रयोजन, गुण, वृत्ति, शब्दवृत्ति, तुक, रसांग नायक-नायिका-भेद, अलंकार, दोष, चित्रकाव्य, निर्वाण और दान आदि का वर्णन भेदोपभेदों के साथ किया गया है।