चोट्टी का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- नपोलिताना चोट्टी नंबर वन , ज़ाहिर है नज़ाकत में सिर झुकाकर बोली, ‘प्रियवंत, जानती थी तुम हिंद के पुरुषोत्तम हो, दिल तुम्हारा चुरा नहीं सकती, इसीलिए झोले का ज़रा सा बिल भर हटा लिया, ग़र ग़लती हुई तो करो सर कलम, अधिकार बनता है तुम्हारा?'
- दिबाकर भी आखिर में कंक्लूषन एक्सप्लेन नही कर पाये पर समझ में आता है की बाप अपनी बेटी को किता प्यार करता है और कितना खुश होके उस दिन की एक चोट्टी सी बात को कितना खुश होकर कहानी बना कर बता ता है .
- शमशान चंपा - शिवानी जी -एक लड़की चंपा की कहानी जो डॉक्टर है और अपनी माँ की देखभाल करती है , जो पति के जालसाजी का इल्जाम और मौत से दुखी है साथ ही चोट्टी बेटी जूही के मुस्लिम लड़के से विवाह की बदनामी से भी परेशां है ।
- अतः चाहे चोट्टी के तीर पर रहने वाले मुंडा आदिवासी हों या जंगल के दावेदार हों , जितनी उनकी चर्चा हुई है , उतनी चर्चा उन स्रोत भाषा-पाठों के बाहर न तो ध्रुव भट्ट के नर्मदा तीर पर रहने वाले साठसाली आदिवासियों की हुई , न ही दर्शक के महाभारत कालीन नाग आदिवासियों की।
- कभी कटक में वकालत किया था , तीन कमरों वाला एक मकान अभी भी शहर में है, वकालत की कमाई से ही खरीदा था, लेकिन मातृभूमि का मोह होगा, ज़्यादा वक़्त अब गांव में ही रहते हैं, पान का एक ताज़ा बीड़ा मुंह में दाबकर अपने दालान में पंचायत की खटिया खींचकर फैलकर बैठते हुए बोले, ‘बुढ़िया की बातों को गंभीरता से मत लीजिएगा, वह चोट्टी है, कुछ नहीं जानती.
- कभी कटक में वकालत किया था , तीन कमरों वाला एक मकान अभी भी शहर में है , वकालत की कमाई से ही खरीदा था , लेकिन मातृभूमि का मोह होगा , ज़्यादा वक़्त अब गांव में ही रहते हैं , पान का एक ताज़ा बीड़ा मुंह में दाबकर अपने दालान में पंचायत की खटिया खींचकर फैलकर बैठते हुए बोले , ‘ बु ढ़ि या की बातों को गंभीरता से मत लीजिएगा , वह चोट्टी है , कुछ नहीं जानती .
- अभी पांचों साल नै हुआ और सब बिसरा दी रे ? ऊ सुनीतवा का जेठ का दमाद है ऊहे बोल रही थी तुम हमरे बारे में अनाप-सनाप बीष फैला रही हो, काहे रे, सकिनिया? तुमको करेजा का भीतरी का सब कहानी बोले, मन-मंदिर का राज खोले, बहीन से जादा का तुमको मर्जादा और इज्जत दिये, एही दिन का बास्ते रे, चोट्टी? हमरे हाथ में अब तीन तोला का कंगन और गरदन में सतलड़ा हार सोभित है, इसीलिए तू डाह से मर गई, एतना छोट हो गई रे, तू, सकिनिया?
- हम अपनी सरकार को ‘ चोट्टी सरकार ' मानते / कहते हैं ( ऐसा मानने / कहने के लिए हमारे नेताओं ने हमे विवश जो कर दिया है ! ) इसलिए भला चोरों को , अपनी कड़ी मेहनत की कमाई कैसे दे दें ? इसीलिए हम , कर देने में कम और देने से बचने में ( यहाँ ‘ बचने ' के स्थान पर मैं ‘ चुराने ' प्रयुक्त करना चाह रहा हूँ किन्तु ‘ लोक पिटाई ' के भय से ऐसा नहीं कर पा रहा हूँ ) अधिक विश्वास करते हैं और तदनुसार ही अमल भी करते हैं।