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ज़ईफ़ का अर्थ

ज़ईफ़ अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. और वो रिवायत जिसे इमाम तिर्मिज़ी रह० ने रिवायत किया है जिसमें कहा गया है कि अल्लाह तआला बनू कल्ब की बकरियों से ज़्यादा अपने गुनाहगार बन्दों को माफ़ करता है यह रिवायत सख्त ज़ईफ़ और मुनकता ( बहुत पुरानी और कमज़ोर जिसका कोई और सुबूत नहीं हो ) है।
  2. बलन्द व बााला है वह साहेबे क़ूवत जो इस क़द्र करम करता है और ज़ईफ़ व नातवां है तू इन्सान जो उसकी मासीयत की इस क़द्र जराअत रखता है जबके उसी के ऐबपोशी के हमसाये में मुक़ीम है और उसी के फ़ज़्ल व करम की वुसअतों में करवटें बदल रहा है।
  3. फिर भी मैंने खि़लाफ़त के आगे परदा डाल दिया और इससे पहलू तही कर ली और यह सोचना ‘ ाुरू कर दिया के कटे हुए हाथों से हमला कर दूँ या इसी भयानक अन्धेरे पर सब्र कर लूँ जिसमें सिन रसीदा बिलकुल ज़ईफ़ हो जाए और बच्चा बूढ़ा हो जाए और मोमिन मेहनत करते करते ख़ुदा की बारगाह तक पहुंच जाए।
  4. ( 12 ) अब आप फ़रमाते हैं कि इनकी भी चंद क़िस्में हैं कभी क़ुव्वते कशिश व दिफ़ा दोनो क़वी हैं और कभी दोनो ज़ईफ़ , कभी मुस्बत अनासिर को अपनी तरफ़ खीचते हैं और कभी मनफ़ी व बातिल अनासिर को अपने से दूर करते हैं और कभी इसके बरअक्स अच्छे लोगों को दूर करते हैं और बातिल लोगों को जज़्ब करते हैं।
  5. नही ऐसा नही है , बल्कि हर हदीस का एक सनदी सिलसिला है रिजाल की किताबों की मदद से सनद में मौजूद हर इंसान के बारे में छानबीन होती है जिस रिवायत के तमाम रावी मोरिदे यक़ीन होते हैं उस हदीस के हम सही मानते हैं और जिस रिवायत के तमाम रावी मोरिदे इतमिनान नही होते हम उस हदीस को ज़ईफ़ व मशकूक मानते हैं।
  6. सूरए तौबह , आयत 113 ) आयत उतरने की परिस्थिति की यह वजह सही नहीं है , क्योंकि यह हदीस हाकिम ने रिवायत की और इसको सही बताया और ज़हबी ने हाकिम पर भरोसा करके मीज़ान में इसको सही बताया , लेकिन मुख़्तसिरूल मुस्तदरक में ज़हबी ने इस हदीस को ज़ईफ़ बताया और कहा कि अय्युब बिन हानी को इब्ने मुईन ने ज़ईफ़ बताया है .
  7. सूरए तौबह , आयत 113 ) आयत उतरने की परिस्थिति की यह वजह सही नहीं है , क्योंकि यह हदीस हाकिम ने रिवायत की और इसको सही बताया और ज़हबी ने हाकिम पर भरोसा करके मीज़ान में इसको सही बताया , लेकिन मुख़्तसिरूल मुस्तदरक में ज़हबी ने इस हदीस को ज़ईफ़ बताया और कहा कि अय्युब बिन हानी को इब्ने मुईन ने ज़ईफ़ बताया है .
  8. ( (( मक़सद यह है के चूंके इब्तिदाए इस्लाम में मुसलमानों की तादाद कम थी इसलिये ज़रूरत थी के मुसलमानों की जमाअती हैसियत को बरक़रार रखने के लिये उन्हें यहूदियों से मुमताज़ रखना जाए , इसलिये आँहज़रत ने खि़ज़ाब का हुक्म दिया के जो यहूदियों के हाँ मरसूम नहीं है , इसके अलावा यह मक़सद भी था के वह दुश्मन के मुक़ाबले में ज़ईफ़ व सिन रसीदा दिखाई न दें )))
  9. इसके सामने हर क़ौमी ज़ईफ़ है और हर मालिक ममलूक है , हर आलिम मुतअल्लिम है और हर क़ादिर आजिज़ है , हर सुनने वाला लतीफ़ आवाज़ों के लिये बहरा है और ऊंची आवाज़ें भी इसे बहरा बना देती हैं और दूर की आवाज़ें भी इसकी हद से बाहर निकल जाती हैं और इसी तरह इसके अलावा हर देखने वाला मख़फ़ी रंग और हर लतीफ़ जिस्म को नहीं देख सकता है।
  10. इमाम अहमद बिन हंबल रह 0 के बेटे अब्दुल्लाह कहते हैं कि मैने अपने बाप अहमद बिन हम्बल रह 0 से दरयाफ़्त किया कि एक शहर ऐसा हैं जहां एक मुहद्दीस हैं जो सही , ज़ईफ़ हदीस का इल्म नही रखता और एक सहाबुल राय हैं | अब आप फ़रमाये कि मैं किस से फ़तवा पूंछू | तो इमाम अहमद बिन हंबल रह 0 सहाबुल हदीस से पूछो सहाबुल राय से नही |
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