ढाल लेना का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- औरत , जो सिर्फ प्यार करना जनती है, उसे नहीं आता रिश्तों को स्तरों में विभाजित करना, वो जानती है सिर्फ अपनी भावनाओं को रिश्ते के अनुसार ढाल लेना, जैसे पानी को आप जिस रंग में घोलते हैं वो उस रंग का हो जाता है।
- इस तरह की परीक्षाओं में सफल होने के लिए शुरू से ही नया करने की प्रवृति होनी चाहिए . ७-८ क्लास से ही दूसरे तरीके से सोचने की क्षमता का विकास करना चाहिए.और आगे सीखने की च्येष्टा होनी चाहिए.छात्रों को अपने आपको उसी सोच में ढाल लेना चाहिए.
- आप जितना चाहे उतना रो सकते हैं और यदि तन्हां रहना चाहते हैं तो वो भी रह सकते हैं पर जब आप पर्दे के सामने होंगे तो आपको अपने तमाम गम छुपाने होंगे और जैसी फिल्म की कहानी की मांग है उसी अनुसार अपने आपको ढाल लेना होगा .
- निशा जी ……… . . सर्वप्रथम यहाँ पर श्लेष अलंकार है ………… और इसकी सही व्याख्या इस तरह है की ढोल को ताड़ना अर्थात मारना ……… . गंवार को ताड़ना मतलब सुसंस्कारी बनाना ……… शुद्र को ताड़ना अर्थात उसको ऊपर उठाना ……… . और नारी को ताड़ना अर्थात अपने अनुसार ढाल लेना है ……… ..
- वैसे तन मन के पश्चिमीकरण की बात से मैं नहीं सहमत हूँ क्यूंकि वह एक सीमित तबके में ही हुआ है पर हाँ यह सच है कि कोई भी मॉडल अपनाने से पहले उसे अपने देश के सामाजिक और आर्थिक ढाँचे के अनुसार ढाल लेना ज़रूरी है जो हमारे यहाँ अक्सर नहीं किया जाता . ....
- सच है कि हर सपने को पानी की तरह पीने के गिलास में ढाल लेना संभव नहीं और कामना का कटीला संसार ललचने के लिए नए-नए बहाने ढूँढ ही लेगा . ..बेहतर-से-बेहतर, सुन्दर-से-सुन्दर चीज या स्थिति से बेहतर और सुन्दर वस्तु, व्यक्ति और स्थितियों से ही तो भरा है यह संसार और आदमी का कद इस विशालता के आगे बेहद बौना।
- बच्चों को जाने क्यों अपनी ज़िन्दगी की कीमत समझ में नहीं आती पर आप जैसे बच्चों को देखकर थोड़ी निश्चिन्त हो सकते हैं की कम से कम आपके आस-पास ऐसी घटना को आप बचा सकेंगे अपने सुविचारों से . हमेशा अछा सोचो ; ज़िन्दगी में उतार-चढ़ाव आते हैं बस उन्हें मौसम का बदलाव समझ उसके anurup स्वयं को ढाल लेना . आपको पढ़ना भला लगा .
- बहुत मुमकिन है कि एक समाजवादी अख़बार पूरी तरह या तक़रीबन पूरी तरह उनकी समझ से परे हो ( आख़िरकार पश्चिमी यूरोप में भी तो सामाजिक जनवादी मतदाताओं की संख्या सामाजिक जनवादी अख़बारों के पाठकों की संख्या से कहीं काफ़ी ज् यादा है ) , लेकिन इससे यह नतीजा निकालना बेतुका होगा कि सामाजिक जनवादियों के अख़बार को , अपने को मज़दूरों के निम्नतम सम्भव स्तर के अनुरूप ढाल लेना चाहिए।
- यद्यपि अभी मेरा इतिहास सम्बन्धी ज्ञान काफी न्यून है किन्तु प्रयास कर रहा हूँ ! मैंने लेख में नेताजी द्वारा दिए गए संबोधन का आशय संकेत से ही स्पष्ट करना चाहा आपने उसे मुखर भाषा में कह दिया ! यही विडम्बना है कि हम इतिहास के सत्य को भी अपनी सोच में ढाल लेना चाहते हैं इसी कारण कुछ लोगों को मेरे लेख में गांधीजी का अपमान नजर आता है !!