तपोधन का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- ब्रा . - यद्यपि प्रथम उन लोगों की भगवान के वियोग की आशंका से वही दशा हुई जैसी महाराज दशरथ को भगवान रामचन्द्र के तपोधन विस्वामित्र के साथ जाने के समय हुई थी।
- हमारी संस्कृति में धन का इतना महत्व रहा है कि हम वीतराग और त्याग को भी ‘ तपोधन ' कहते हैं , अर्थात तप को भी एक प्रकार का धन ही मानते हैं।
- और मुंशी सियाबुर तइब अली से लेकर तपोधन महेश्शर राखाल की संगतों में निकोलस बेमौका , कहीं का तार कहीं जोड़, पूछने से कभी बाज नहीं आए कि जीवन ठीक-ठीक हमसे चाहती क्या है, तपोधन बाबू?
- और मुंशी सियाबुर तइब अली से लेकर तपोधन महेश्शर राखाल की संगतों में निकोलस बेमौका , कहीं का तार कहीं जोड़, पूछने से कभी बाज नहीं आए कि जीवन ठीक-ठीक हमसे चाहती क्या है, तपोधन बाबू?
- जिनकी धोती की गांठ में अभी कुछ सिक्का-धन होता वो मुन्नीलाल , या तपोधन मईती के ठेके पर ग़म ग़लत करने पहुंचते, वर्ना ज्यादों की कथा यही होती कि वे अपनी शांतिपुरी धोतियों के घेरों में उलझे फड़फड़ाते रहते, रास्तों की भटकन कहीं उन्हें पहुंचाती न होती.
- और मुंशी सियाबुर तइब अली से लेकर तपोधन महेश्शर राखाल की संगतों में निकोलस बेमौका , कहीं का तार कहीं जोड़ , पूछने से कभी बाज नहीं आए कि जीवन ठीक-ठीक हमसे चाहती क्या है , तपोधन बाबू ? या , ‘ काम की राह सीधे चलते हुए एक दिन सत्य का साक्षात होगा , इसकी कभी आश्वस्ति बनेगी , मुंशी तइब साहेब ? '
- और मुंशी सियाबुर तइब अली से लेकर तपोधन महेश्शर राखाल की संगतों में निकोलस बेमौका , कहीं का तार कहीं जोड़ , पूछने से कभी बाज नहीं आए कि जीवन ठीक-ठीक हमसे चाहती क्या है , तपोधन बाबू ? या , ‘ काम की राह सीधे चलते हुए एक दिन सत्य का साक्षात होगा , इसकी कभी आश्वस्ति बनेगी , मुंशी तइब साहेब ? '
- और मुंशी सियाबुर तइब अली से लेकर तपोधन महेश्शर राखाल की संगतों में निकोलस बेमौका , कहीं का तार कहीं जोड़ , पूछने से कभी बाज नहीं आए कि जीवन ठीक-ठीक हमसे चाहती क्या है , तपोधन बाबू ? या , ‘ काम की राह सीधे चलते हुए एक दिन सत्य का साक्षात होगा , इसकी कभी आश्वस्ति बनेगी , मुंशी तइब साहेब ? '
- कल्पना के जापानी मांगाओं में उलझे ऋषिपुत्र सुकुमार तपोधन विशाखकुसुम प्रश्न करें , व प्रश्नोपरांत लम्बी सांस लेने का अवकाश टटोल रहे ही हों, कि जो साक्को की ग्राफ़िक कथा ‘गोरात्ज़े' की शांत घाटियों में एक बार फिर सर्ब सर्वनाशी हरमख़ोर मशीनी बंदूकों की बेशरम शोर कांपती तड़तड़ाहट गूंजने लगे, धुंधलके के बगूलों में ‘तड़-तड़-तड़-तड़..' की तान छूटे, देर तक कहीं कुछ उखड़ता, दरकता, टूटता रहे.
- अनन्त आकाश मण्डल में अपने प्रोज्ज्वल प्रकाश का प्रसार करते हुए असंख्य नक्षत्र-दीपों ने अपने किरण-करों के संकेत तथा अपनी लोकमयी मूकभाषा से मानव-मानस में अपने इतिवृत्त की जिज्ञासा जब जागरुक की थी , तब अनेक तपोधन महर्षियों ने उनके समस्त इतिवेद्यों की करामलक करने की तीव्र तपोमय दीर्घतम साधनाएँ की थीं और वे अपने योग-प्रभावप्राप्त दिव्य दृष्टियों से उनके रहस्यों का साक्षात्कार करने में समर्थ हुए थे।