दीर्घायुष्य का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- ऋग्वेद में सूर्योपासना के अनेकानेक प्रसंग हैं , जिनमें सूर्य से पाप- मुक्ति , रोग- नाश , दीर्घायुष्य , सुख- प्राप्ति , शत्रु- नाश , दरिद्रता- निवारण आदि के लिए प्रार्थना की गयी है।
- ऋग्वेद में सूर्योपासना के अनेकानेक प्रसंग हैं , जिनमें सूर्य से पाप- मुक्ति , रोग- नाश , दीर्घायुष्य , सुख- प्राप्ति , शत्रु- नाश , दरिद्रता- निवारण आदि के लिए प्रार्थना की गयी है।
- इन्द्रियों की कार्यक्षमता में वृद्धिः आँवले का चूर्ण पानी , घी या शहद के साथ सेवन करने से जठराग्नि बढ़ती है , सुनने , सूँघने , देखने की क्षमता में बढ़ोतरी होती है तथा दीर्घायुष्य प्राप्त होता है।
- कहते हैं कि इन्सान को सदैव सात्विक आहार का ही सेवन करना चाहिए , क्योंकि प्राकृतिक नियम के अनुसार मानव का भोजन फलाहार और शाकाहार ही है.जो कि शारीरिक निरोगता, शक्तिवर्द्धन और दीर्घायुष्य जैसी सतोगुणी शक्तियों की प्राप्ति का एकमात्र स्त्रोत है.
- जैसे जन्मदिन पर उत्सव का माहौल रहता है , संबंधित व्यक्ति को शुभकामनाएं दी जाती हैं, उसके दीर्घायुष्य की कामना की जाती है, इत्यादि, उसी भांति आज हिंदी का गुणगान किया जाता है, उसके पक्ष में बहुत कुछ कहा जाता हैं ।
- हम सीमा आज़ाद को जन्मदिन की मुबारकवाद देते हैं और उनके सुखद , सुंदर , स्वस्थ , समृद्ध और उज्ज्वल पारिवारिक , सामाजिक , राजनीतिक भविष्य एवं दीर्घायुष्य की मंगलकामना तथा उनके और उनके पति की शीघ्र रिहाई की आशा करते हैं।
- जैसे जन्मदिन पर उत्सव का माहौल रहता है , संबंधित व्यक्ति को शुभकामनाएं दी जाती हैं , उसके दीर्घायुष्य की कामना की जाती है , इत्यादि , उसी भांति आज हिंदी का गुणगान किया जाता है , उसके पक्ष में बहुत कुछ कहा जाता हैं ।
- जिसे मौत का भय होता है या घर में मौतें बार-बार होती हों , तो शनिवार को “ ॐ नमः शिवाय ” का जप करें और पीपल को दोनों हाथों से स्पर्श करें l खाली १ ० ८ बार जप करें तो दीर्घायुष्य का धनी होगा l अकाल मृत्यु व एक्सिडेंट आदि नहीं होगा l आयुष्य पूरी भोगेगा l ऐसा १ ० शनिवार या २ ५ शनिवार करें , नहीं तो कम से कम ७ शनिवार तो ज़रूर करें l
- आपको इसे उठाने का क्या अधिकार था ? “ राजकुमार गौतम स्नेह भरे स्वर में बोले-”जब आपको उसके प्राण लेने का अधिकार है, तब मुझे उसके प्राण बचाने का भी अधिकार न दोगे भाई !” भोजन द्वारा स्वास्थय (सात्विक आहार) कहते हैं कि इन्सान को सदैव सात्विक आहार का ही सेवन करना चाहिए, क्योंकि प्राकृतिक नियम के अनुसार मानव का भोजन फलाहार और शाकाहार ही है.जो कि शारीरिक निरोगता, शक्तिवर्द्धन और दीर्घायुष्य जैसी सतोगुणी शक्तियों की प्राप्ति का एकमात्र स्त्रोत है.
- ये पारदेश्वर वस्तुतः आपका ही आत्म रूप होता है जिसे पिंड या विग्रह रूप में आप स्थापित करते हो , जिन सप्त लोकों के बारे में मैंने ऊपर बताया है वो सप्त तत्व आपके सप्त शरीर का ही तो प्रतिनिधित्व करते हैं .जिनका सम्बन्ध जैसे ही रस-लिंग से होता है आपका रस ,आपका बिंदु भी चैतन्य होते जाता है .और जैसे जैसे उसकी चैतन्यता बढती जाती हैं वैसे वैसे आपका आंतरिक कायाकल्प होते जाता है और दीर्घायुष्य के साथ प्राप्त होता है दृष्टा भाव भी.