धूप-छाँह का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- कुशल तूलिका वाले कवि की नारी एक कला है फूलों से भी अधिक सुकोमल नरम अधिक नवनी से प्रतिपल पिछल-पिछल उठने वाली अति इन्दु मनी से , नवल शक्ति भरने वाली वह कभी नहीं अबला है तनया-प्रिया-जननि के अवगुण्ठन में रहने वाली, सत्यं शिवम् सुन्दरम् सी जीवन में बहने वाली विरह मिलन की धूप-छाँह में पलती शकुन्तला है।
- * बोल उछते हैं ये पत्थर ! हटा कर यह सदियों की धुन्ध , और जो पडी युगों की भूल , अनगिनत अविरल काल-प्रवाह इन्हीं मे खोते जाते भूल ! अभी भी अंकित रेखा - जाल , बीतते इतिवृत्तों की याद , सो रहा यहाँ युगों से शान्त , पूर्व की घडियों का उन्माद ! सँजोये कितने हर्ष -विषाद , अटल हैं ये बिखरे पत्थर ! * गगन के बनते-घुलते रंग , क्षितिज के धूप-छाँह के खेल .
- जो नहीं उठाते जोखिम जो खड़े नहीं होते तनकर जो कह नहीं पाते बेलाग बात जो नहीं बचा पाते धूप-छाँह यदि तटस्थता यही है तो सर्वाधिक ख़तरा तटस्थ लोगों से है तटस्थ उपाय नहीं ढूँढते नहीं करते निर्णय न ही करते कोई विचार उपाय , निर्णय या विचार इनके बस का नहीं ऐसे ही शून्यकाल में तटस्थ हो जाते हैं कितने निर्मम कितने दुर्दम दीखते हैं कितने ख़तरनाक ख़ुद को शरीफ़ बनाए रखने में पृथ्वी को ज़्यादा दिनों तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता ******
- एक आँगन धूप बुदापैश्त - ४ शाम रौशन काम से छुट्टी भीड़ गहमह छतरियों के झुंड अपनापन स्वजन का तश्तरी में स्वाद मन का प्रवासी उड़ रहे पंछी प्रवासी सूर्य की किरणें उदासी आसमानों में घटा सी बुदापैश्त- ०३ हलचलों में गुम गली है रौशनी की खलबली है शहर में शाम उतरी है अम्मा पढ़ती है काम काज में बचपन बीता काम काज में गई जवानी उम्र गए पर फुरसत पाकर अब देखो अम्मा पढ़ती है धूप-छाँह तरुवरों से घिरा रस्ता धूप थोड़ी छाँह थोड़ी जिंदगी सा- नजर तक आता था सीधा अंत पर दिखता नहीं था ०२ .