नक्त का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- इसलिये यदि इतना समय न मिले या सामर्थ्य न हो तो सात , पाँच , तीन या एक दिन व्रत करे और व्रतमें भी उपवास , अयाचित , नक्त या एकभुक्त - जो बन सके यथासामर्थ्य वही कर ले
- यह योग निम्न होते हैं- इत्थशाल योग इशराफ योग नक्त योग कंबूल योग रद्द योग मणऊ योग खल्लासार योग इत्थशाल योग : इत्थशाल योग का निर्माण तब होता है जब तीव्र गति और कम भोगांश वाला ग्रह मंद गति और अधिक भोगांश वाले ग्रह से पीछे हो।
- कार्तिक पूर्णिमा पर नारी को घर की दीवार पर उमा एवं शिव का चित्र बनाना चाहिए ; इन दोनों की पूजा गंध आदि से की जानी चाहिए और विशेषतः ईख या ईख के रख से बनी वस्तुओं का अर्पण करना चाहिए ; बिना तिल के तेल के प्रयोग के नक्त विधि से भोजन करना चाहिए।
- नक्त योग : जब वर्ष कुंडली में लग्नेश और कार्येश की परस्पर एक दूसरे पर दृष्टि न हो , परंतु दोनों ग्रहों के मध्य दीप्तांशों के अभ्यंतर तीव्र गति वाला कोई अन्य ग्रह हो , जो लग्नेश और कार्येश दोनों पर दृष्टि डालता हो अथवा अन्य प्रकार से संबंध रखता हो , तब वह ग्रह शीघ्र गति वाले ग्रह का तेज मंद गति वाले ग्रह को देता है।
- इन योगों के नाम इस प्रकार से हैं : इक्कबाल योग इंदुवार योग इत्थशाल योग इशराफ योग नक्त योग यमया योग मणऊ योग कंबूल योग गैरी कंबूल योग खल्लासर यागे रदद् योग दफु ालिकत्ु थ यागे दत्ु थकत्ु थीर यागे तबं ीर यागे कुत्थ योग दुरुफ योग ऊपर वर्णित सभी 16 योग प्रायः फारसी भाषा से प्रभावित लगते हैं , परंतु इनका उपयोग भारतीय ज्योतिष प्रणाली में ही हुआ है।
- प्रश्न : क्या वर्ष कुंडली के योग जन्म कुंडली के योगों के समान होते हैं ? उŸार : वर्ष कुंडली में जन्म कुंडली से पूर्णतः भिन्न योग होते हैं और इसमें केवल 16 योगों का उल्लेख है , जैसे-इक्कबाल , इन्दुवर , इत्यशाल , इसराफ , नक्त , यमया , मणऊ , कम्बूल , गैरी कम्बूल , खल्लासर रद्द , दुफालिकुत्थ , दुत्थकुत्थीर , तम्बीर , कुत्थ , दूरूफ योग।
- प्रश्न : क्या वर्ष कुंडली के योग जन्म कुंडली के योगों के समान होते हैं ? उŸार : वर्ष कुंडली में जन्म कुंडली से पूर्णतः भिन्न योग होते हैं और इसमें केवल 16 योगों का उल्लेख है , जैसे-इक्कबाल , इन्दुवर , इत्यशाल , इसराफ , नक्त , यमया , मणऊ , कम्बूल , गैरी कम्बूल , खल्लासर रद्द , दुफालिकुत्थ , दुत्थकुत्थीर , तम्बीर , कुत्थ , दूरूफ योग।
- जात , देख सुन उसका क्रंदन जहाँ नहीं कोई अड़तल ताहम विस्मृत कर समस्त व्रीडाएँ खोला उस स्त्री ने देव दुर्लाभय अमृत से भरा परिवर्तुल स्तन स्तब्ध नक्त पाषाण खंड से जड़ सम्मुख देखते सहज सुलभ्य नारीक दुस्पर्ष अन्चीन्हित ज़िग्यासाएँ अब भी एकटक किन्तु नहीं थे वे भाव अब उन आंखों में यथावत वरन बड़ रही ठी ह्रदय की प्रखर वेदना और हो रहा था निर्मल जीवन का उदय शनेः शनेः , सत्यत: