नवाना का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- पर अपेक्षा ये कि हमें भी इस बोधि वृक्ष के नीचे शीश नवाना चाहिये ! दूसरी विवशता ये कि अपने ही अन्य महाबाहु / बाहुबली बंधु गन पाइंट पर गणतंत्र ले उड़े हैं और वे भी चाहते हैं कि हम शराफत से केवल उनके ही अनुयाई बने रहे ! कहने का आशय ये कि ज्ञान मत्स्य बनाम शक्ति उपासकों के फ्यूहररत्व के दरम्यान हमारी अपनी कोई औकात है भी कि नहीं ?
- आपके ब्लॉग की ज्ञान गंगा के आगे नतमस्तक हो कर सर नवाना ही अच्छा लगता है | लम्बी टिपण्णी - उस पर - करना मेरी काबिलियत से बाहर की बात है | वहां मैं एक नहीं कई बार पढ़ कर जाती हूँ - टिप्पणियां भी हर बार पढ़ जाती हूँ , परन्तु अपने आप को वहां कुछ कहने योग्य मैं स्वयं को नहीं समझ पाती - सो अक्सर चुप ही लौट आती हूँ |
- सवाल ये उठता है कि इस अंधभक्ति की लौ जलती कैसे है ? कहां से आता है इतना बड़ा जनसमूह ? कैसे पैदा होती है यह श्रद्धा कि बाबा दर्शन दें और हम उनके चरणों में गिरें ? क्यों हमारी चेतना एक बार भी यह सवाल नहीं करती कि यह भी हमारी ही तरह हाड़-मांस का पुतला है , इसके आगे क्यों शीश नवाना ? गुस्ताखी माफ , लेकिन हम सब ऐ से ही परिवारों से आते हैं , जहां आदर करना , शीश झुकाना संस्कारों के दायरे में आता है।
- बंधुओं बचपन में जिस क़स्बे में पला - बढा वहां पास में एक मस्जिद है सुबह सुबह “ अल्लाह हो अकबर ” की गूंज सुनाई देती थी I कभी कभी किस के इंतकाल की खबर भी लाउडस्पीकर के माध्यम से सुनता था I कुछ भी समझ में नहीं आता था मगर ये मानते हुए की किसी धर्म विशेष की आस्था का विषय है मन ही मन नमन कर लेता था उस परमपिता को I वैसे भी सहिष्णु हिन्दू धर्म में हर धर्मस्थल पर शीश नवाना कोई नयी बात नहीं है I
- 97 . मैं इसलाम की ऐसी सहीह तअरीफ़ ( उचित परिभाषा ) बयान करता हूं जो मुझसे पहले किसी ने बयान नहीं की , इसलाम सरे तसलीम खम करना ( अभिवादन हेतु शीश नवाना ) है , और सरे तसलीम ( अभिवादनार्थ शीश ) झुकाना यक़ीन ( द्रढ़ विश्वास ) है , और यक़ीन तस्दीक़ ( विश्वास पुष्टि ) है , और तस्दीक़ एतिराफ़ ( पुष्टि स्वीकार्य ) है , और एतिराफ़ ( स्वीकारना ) फ़र्ज़ की बज़ाआवरी ( कर्तब्य परायणता ) है , और फ़र्ज़ की बज़ाआवरी अमल ( कर्तब्य परायणता कर्म ) है।