निगुरा का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- ज्ञानेंद्रपति ने ख़ुद को ` निगुरा ' कहा है ! मैं भी ` निगुरा ' ही हूं पर एक पूरी परम्परा का हाथ मेरी पीठ पर है , जिसे मेरी कविताओं में लक्षित किया जा सकता है।
- साधू-संतो से झगडा भी अच्छा है परन्तु निगुरा ( जिसका कोई गुरू नहीं है ) से मेल-मिलाप कदापि अच्छा नहीं है , क्योंकि साधू से झगडा होने पर निर्णय अच्छा हो सकता है पर निगुरे से मेल-मिलाप कभी भी फलदायी नहीं हो सकता।
- -बीमारी आती शरीर को , निगुरा बोलता मैं बीमार हूँ , -दुःख आता है मन को -निगुरा बोलता मैं दुखी हूँ , -चिंता आती है चित्त में निगुरा बोलता मैं चिंतित हूँ … ये जो शरीर दिखता है , वो मरनेवाला एक साधन है ..
- -बीमारी आती शरीर को , निगुरा बोलता मैं बीमार हूँ , -दुःख आता है मन को -निगुरा बोलता मैं दुखी हूँ , -चिंता आती है चित्त में निगुरा बोलता मैं चिंतित हूँ … ये जो शरीर दिखता है , वो मरनेवाला एक साधन है ..
- -बीमारी आती शरीर को , निगुरा बोलता मैं बीमार हूँ , -दुःख आता है मन को -निगुरा बोलता मैं दुखी हूँ , -चिंता आती है चित्त में निगुरा बोलता मैं चिंतित हूँ … ये जो शरीर दिखता है , वो मरनेवाला एक साधन है ..
- आप यदि ' अध्यात्म ' को जानते हों और ' देहानुगत गुरु ' से नहीं बल्कि ' ज्ञान गुरु ' से जुड़ने का मादा रखते हैं , तो आपको चाहिए कि ' धर्मानुसार गुरु दीक्षा ' अवश्य प्राप्त कर जीवन को ' निगुरा ' होने से बचाएं .
- आप यदि ' अध्यात्म ' को जानते हों और ' देहानुगत गुरु ' से नहीं बल्कि ' ज्ञान गुरु ' से जुड़ने का मादा रखते हैं , तो आपको चाहिए कि ' धर्मानुसार गुरु दीक्षा ' अवश्य प्राप्त कर जीवन को ' निगुरा ' होने से बचाएं .
- तब उन्हें जबाब मिला कि ये तो तुम्हारी वजह से हमें रोज ही करना पङता है क्योंकि तुम निगुरा ( जिसका कोई गुरु ना हो ) हो अतः तुम्हारे बैठने से स्थान अपवित्र हो जाता हैं नारद जी ने कहा कि गुरु का इतना महत्व है और मैं इस सत्य से अनजान था .
- प्रसंगवश , यदि किसी पाठक की बापू-भक्ति को इस लेख से ठेस पहुँची हो तो वह हमें निगुरा और इस नाते अज्ञानी समझ कर माफ कर दे और कभी ऐसे बापू से उसका संवाद ( जो भक्त और बापू में प्रायः दुर्लभ ही होता है ) हो तो उन तक हमारी यह अर्दास पहुँचा दे।
- क्योंकि जो निगुरा है , उसके जैसा पतित और घटिया इन्सान तो बकौल बापूजी कोई होता नहीं और बैकुण्ठ-कामी इस देश में कौन खुद को घटिया , पतित और स्वयं बापू व बापू-भक्तों के लिए अस्पृश्य कहलाना चाहेगा ? किन्तु हमारी इस मनोकामना में एक बहुत ही गहरी विसंगति है , जो अधिकतर बापू लोगों के स्वयं निरक्षर भट्टाचार्य होने के कारण उपजी है।