पद-चिह्न का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- अब गलत इरादे से बढ़े तुम्हारे हर हाथ को हजारों तीखे दंश झेलने ही पड़ेंगे चारों तरफ से अब तुम्हारे किसी भी बहके हुए कदम को आतंक के पद-चिह्न छोड़ने के लिए नहीं मिलेगा एक भी ठौर अब पूरी निशानदेही होगी तुम्हारी चप्पे-चप्पे पर और हर गली-कूचे में कड़ी निगरानी होगी तुम्हारी हिस्ट्री-शीटरों की तरह।
- आह ! उसने यह नौबत ही क्यों आने दी ? उसने क्यों कृत्रिम साधनों से , बनावटी सिंगार से कुंवर को धोखें में डाला ? अब इतना सब कुछ हो जाने पर वह किस मुँह से कहेगी कि मैं रंगी हुई गुड़िया हूँ , जबानी मुझसे कब की विदा हो चुकी , अब केवल उसका पद-चिह्न रह गया है।
- वह आगत को अनुसरण के लिये ललचाता है , अनुगत की आस्था को आत्मविश्वास के साथ राह दिखाता है , विगत को सजीव संस्मरणों की लड़ियों में रूपायित करता है , परिकल्पनाओं के पंख लगा क्षितिज पर महाकाव्य लिखता है , तथागत के आलोकित पथ को और भी प्रशस्त करता है , समय की शिला पर अपने अमिट पद-चिह्न उकेरता है।
- दिल ये नादाँ फिर दिवाना हो गया ! उस गली में आना-जाना हो गया दिल का यारो आबो-दाना हो गया आपसे सुनने-सुनाने की सुनी- किस क़दर दुश्मन ज़माना हो गया कोई तहज़ीबन भी मुस्काया अगर दिल ये नादाँ-फिर दिवाना हो गया ये इबादत - उसके नक़्शे-पा* दिखे फ़र्ज़ अपना सर झुकाना हो गया सिर्फ़ दो दिन आपसे मिलते हुए जाने कब रिश्ता पुराना हो गया - इबादत = उपासना, पूजा नक़्शे-पा = पद-चिह्न तहज़ीबन = औपचारिकता-वश, शिष्टाचार-वश
- बात जब नव परिवर्तनों के दौर की है और वह भी हिन्दी वेब-लॉग यानि ब्लॉगिंग के संबंध में तो 21 अप्रैल , 2003 की तारीख अमिट पद-चिह्न की तरह उल्लेखनीय है कि उस रोज दिन-भर की हलचल के उपरान्त मध्याह्न की ओर पाँव बढ़ा चुकी रात्रि के 22 : 21 बजे हिन्दी के प्रथम ब्लॉगर , मोहाली , पंजाब निवासी आलोक ने अपने ब्लॉग ‘ 9 2 11 ' पर अपना पहला ब्लॉग-आलेख पोस्ट किया | उनकी पहली पोस्ट भी कम दिलचस्प नहीं है -