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पायु का अर्थ

पायु अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. भगवान् ने चौदह वर्ष के वनवास के द्वारा ये समझाया कि अगर व्यक्ति जवानी में चौदह पांच ज्ञानेन्द्रियाँ ( कान, नाक, आँख, जीभ, चमड़ी), पांच कर्मेन्द्रियाँ (वाक्, पाणी, पाद, पायु, उपस्थ), तथा मन, बुद्धि,चित और अहंकार को वनवास में रखेगा तभी प्रत्येक मनुष्य अपने अन्दर के घमंड या रावण को मार पायेगा.
  2. - आत्मा ( पुरुष ) ( अंत : करण 4 ) मन बुद्धि चित्त अहंकार ( ज्ञानेन्द्रियाँ 5 ) नासिका जिह्वा नेत्र त्वचा कर्ण ( कर्मेन्द्रियाँ 5 ) पाद हस्त उपस्थ पायु वाक् ( तन्मात्रायें 5 ) गन्ध रस रूप स्पर्श शब्द ( महाभूत 5 ) पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश
  3. यजुर्वेद में अस्थिपंजर का ही नहीं वरन् शरीर के अन्य भागों की गणना भीहै जिसके अन्तर्गत लोम , त्वचा, मांस, अस्थि, मज्जा, यकृत, क्लोमन् (फेफड़ा), गुर्दा, पित्त, गुदा, प्लीहा, नाभि, उदर, वनिष्ठु, योनि, प्लाशि अथवा शेय, मुख, शिर, जिह्वा, आसन्, पायु, केश, चक्षु, पक्ष्माणि, उतानि, नासिका, व्यान्, नस्यानि (नाक का बाल), कर्ण, भ्रू, धड़, उपस्थ, श्मश्रूणि और केश है.
  4. धर्मयुग की उस रचना के बाद इस रचनाकार के परवर्ती , अनुक्रमिक और अनवरत रचनात् मक अवदान की तो बात ही निराली है - इतनी अल् पायु में ही एक भरापूरा वैज्ञानिक उपन् यास ‘ गिनीपिग ' , तीन विज्ञान कथा संग्रह , विज्ञान कथाऍं उनके किसी भी सहधर्मी को ईर्ष् यालु बना देने के लिए काफी हैं।
  5. से आकाश च से गन्ध छ से रस ज से रूप झ से स्पर्श यं से शब्द ट से पायु ठ से उपस्थ ड से हाथ ढ से पैर ण से वाक त से नाक थ से जीभ द से आंख न से कान प से प्रकृति फ़ से अहंकार ब से बुद्धि भ से मन म से पुरुष
  6. भगवान् ने चौदह वर्ष के वनवास के द्वारा ये समझाया कि अगर व्यक्ति जवानी में चौदह पांच ज्ञानेन्द्रियाँ ( कान , नाक , आँख , जीभ , चमड़ी ) , पांच कर्मेन्द्रियाँ ( वाक् , पाणी , पाद , पायु , उपस्थ ) , तथा मन , बुद्धि , चित और अहंकार को वनवास में रखेगा तभी प्रत्येक मनुष्य अपने अन्दर के घमंड या रावण को मार पायेगा .
  7. भगवान् ने चौदह वर्ष के वनवास के द्वारा ये समझाया कि अगर व्यक्ति जवानी में चौदह पांच ज्ञानेन्द्रियाँ ( कान , नाक , आँख , जीभ , चमड़ी ) , पांच कर्मेन्द्रियाँ ( वाक् , पाणी , पाद , पायु , उपस्थ ) , तथा मन , बुद्धि , चित और अहंकार को वनवास में रखेगा तभी प्रत्येक मनुष्य अपने अन्दर के घमंड या रावण को मार पायेगा .
  8. मनुष्य का शरीर नौ-द्वारो वाली एक स्थूल काया है , जोकि पाँच महाभूत ( आकाश , वायु , अग्नि , पृथ्वी और जल ) , के कारण बनता है , जिसमे पाँच ज्ञानेन्द्रिया ( श्रोत्र , त्वचा , चक्षु , जिव्हा एवं , घ्राण ) , पाँच कर्मेन्द्रिया , ( वाक़ , हस्त , पाद , पायु , उपस्थ ) ग्यारहवां उनका स्वामी मन , पाँच विकार ( शब्द , स्पर्श , रूप , रस , एवं गंध ) , बुद्दी , अहंकार और अव्यक्त परा प्रकृति प्राण इस प्रकार कुल चौबीस होते है !
  9. मनुष्य का शरीर नौ-द्वारो वाली एक स्थूल काया है , जोकि पाँच महाभूत ( आकाश , वायु , अग्नि , पृथ्वी और जल ) , के कारण बनता है , जिसमे पाँच ज्ञानेन्द्रिया ( श्रोत्र , त्वचा , चक्षु , जिव्हा एवं , घ्राण ) , पाँच कर्मेन्द्रिया , ( वाक़ , हस्त , पाद , पायु , उपस्थ ) ग्यारहवां उनका स्वामी मन , पाँच विकार ( शब्द , स्पर्श , रूप , रस , एवं गंध ) , बुद्दी , अहंकार और अव्यक्त परा प्रकृति प्राण इस प्रकार कुल चौबीस होते है !
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