पुरबा का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- जिन प्रश्नों ने तुमको घेरा , मैं भी उनमें कभी हुआ गुम जिन शाखों पर कली प्रफ़ुल्लित , उन पर ही हैं सूखे विद्रुम क्यों पुरबा का झोंका कोई , अकस्मात झंझा बन जाता जितना कोई तुम्हें न जाने , उतना जान सको खुद को तुम
- कामनायें , चमक फुलझड़ी की रहे ला दिवस नित बताशे रखे हाथ पर गंध की झालरी नित्य चुन बाग से फूल टाँगे नये आपके द्वार पर रात रजताभ हों चाँदनी से धुली दिन पिघलते हुए स्वर्ण से भर रहे सन्दली शाख पर जो रही झूलती आपकी वीथि में वोही पुरबा बहे
- एक दीपक वही जो कि जलते हुए मेरे गीतों में करता रहा रोशनी एक चन्दा वही , रात के खेत में बीज बो कर उगाता रहा चाँदनी एक पुरबा वही , मुस्कुराते हुए जो कि फूलों का श्रन्गार करती रही एक बुलबुल वही डाल पर बैठ जो सरगमों में नये राग भरती रही
- जब आंखों के ही प्रश्न उलझ कर आंखों में रह जाते हैं मचला करते हैं मन में जब न शब्द अधर पर आते हैं जब बांसुरिया की धुन कहती उसको कुछ नाम दिया जाये पुरबा का कोई तकाजा हो उसको सुर में गाया जाये पीड़ा को पीकर सीपी सी आंखें जब दीप उगलती हैं जो दिल को जाकर छू लेती कवितायें उस पल बनती हैं जब प्रश्नों की ध्वनि उत्तर के व्यूहों में फ़ँस रह जाती है कविता उस पल आ जाती है .