प्रतर्दन का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- इस पर प्रतर्दन ने कहा- ' हे देवराज! जिस श्रेष्ठ वर को आप मानव-जाति के लिए परम कल्याणयुक्त मानते हों, वैसा ही कोई श्रेष्ठ वर आप स्वयं ही मुझे प्रदान करें।'
- इस पर प्रतर्दन ने कहा- ' हे देवराज! जिस श्रेष्ठ वर को आप मानव-जाति के लिए परम कल्याणयुक्त मानते हों, वैसा ही कोई श्रेष्ठ वर आप स्वयं ही मुझे प्रदान करें।'
- यहाँ इन्द्र और दिवोदास राजा के पुत्र प्रतर्दन के पारस्परिक संवादों द्वारा प्राण को प्रज्ञा का स्वरूप बताया है और कहा है कि इस प्रज्ञा से ही लोकहित सम्भव है।
- यहां इन्द्र और दिवोदास राजा के पुत्र प्रतर्दन के पारस्परिक संवादों द्वारा प्राण को प्रज्ञा का स्वरूप बताया है और कहा है कि इस प्रज्ञा से ही लोकहित सम्भव है।
- यहां इन्द्र और दिवोदास राजा के पुत्र प्रतर्दन के पारस्परिक संवादों द्वारा प्राण को प्रज्ञा का स्वरूप बताया है और कहा है कि इस प्रज्ञा से ही लोकहित सम्भव है।
- उपनिषदों में प्रतर्दन आदि राजाओं के बारे में तो यहाँ तक लिखा है कि पंचाग्नि विद्या जैसी चीजें वही जानते थे आरुणि जैसे प्रगाढ़ विद्वान ब्राह्मणों को भी मालूम न थीं।
- ' प्रतर्दन की बात सुनकर देवराज इन्द्र ने कहा- ' राजन ! इस संसार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है , जो दूसरों के सुख के लिए वर मांगता हो।
- ' प्रतर्दन की बात सुनकर देवराज इन्द्र ने कहा- ' राजन ! इस संसार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है , जो दूसरों के सुख के लिए वर मांगता हो।
- ' प्रतर्दन की बात सुनकर देवराज इन्द्र ने कहा- ' राजन ! इस संसार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है , जो दूसरों के सुख के लिए वर मांगता हो।
- अत : उनके साहस एवं युद्ध कौशल से प्रसन्न हो देवराज इन्द्र प्रतर्दन को वरदान देने की इच्छा व्यक्त करते हैं किंतु प्रतर्दन वरदान में संपूर्ण मानव-जाति का कल्याण मांगते हैं .