प्राक्तन का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- भी पोस्ट कर दिया है . ...हर काम मै अपने इंस्टिक्ट से करती हूँ....उस वक़्त अपने आपको चाह कर भी, रोक नही पाती...जैसे कोई अज्ञात शक्ती मुझे आदेश दे रही हो, जिसका मुझे पालन करनाही है...उसके जोभी परिणाम हो, भुगतने ही हैं....यही मेरा प्राक्तन है, जिसे कोई बदल नही सकता....ना अपनी राह बदल सकती हूँ, ना पीछे मुड़ के चल सकती हूँ...हर किसी की तरह आगेही चलना है....आगे क्या है वो दिख भी रहा है, लेकिन टाला नही जा सकता....पढने वालों को अजीब-सा लगेगा, लेकिन यही इस पलका सत्य है.... समाप्त।
- प्राक्तन प्रयत्न जनित कर्म ही दैव है , इस द्वितीय पक्ष में तो ' दैव असत् है ' इस प्रकार की दैव में असत्त्वप्रतिज्ञा का भंग हो जायेगा , आधुनिक प्रवृत्तियाँ भी पूर्वकर्म की फलरूपा हैं , अतः प्राक्तन कर्मों के अनुकूल होने के कारण उनका विरोध न होने से ' आधुनिक प्रवृत्तियों से पूर्वकर्मों का जय होता है , यह कथन भी विरुद्ध होगा एवं कर्मपरतन्त्र होने पर पुरुष की स्वतन्त्रता का भी विघात होगा , इस प्रकार के गूढ़ अभिप्राय वाले श्रीरामचन्द्रजी उसके तात्पर्य की जिज्ञासा से वसिष्ठजी से पूछते हैं।
- प्राक्तन प्रयत्न जनित कर्म ही दैव है , इस द्वितीय पक्ष में तो ' दैव असत् है ' इस प्रकार की दैव में असत्त्वप्रतिज्ञा का भंग हो जायेगा , आधुनिक प्रवृत्तियाँ भी पूर्वकर्म की फलरूपा हैं , अतः प्राक्तन कर्मों के अनुकूल होने के कारण उनका विरोध न होने से ' आधुनिक प्रवृत्तियों से पूर्वकर्मों का जय होता है , यह कथन भी विरुद्ध होगा एवं कर्मपरतन्त्र होने पर पुरुष की स्वतन्त्रता का भी विघात होगा , इस प्रकार के गूढ़ अभिप्राय वाले श्रीरामचन्द्रजी उसके तात्पर्य की जिज्ञासा से वसिष्ठजी से पूछते हैं।