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प्लक्ष का अर्थ

प्लक्ष अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. बलराम जी द्वारा इसके तट के समान्तर प्लक्ष पेड़ ( प्लक्षप्रस्त्रवण , यमुनोत्री के पास ) से प्रभास क्षेत्र ( वर्तमान कच्छ का रण ) तक की गयी तीर्थयात्रा का वर्णन भी महाभारत में आता है।
  2. सरस्वती नदी का महाभारत में कई बार वर्णन आता हैं , बलराम जी द्वारा इसके तट के समान्तर प्लक्ष पेड़ (प्लक्षप्रस्त्रवण, यमुनोत्री के पास) से प्रभास क्षेत्र (वर्तमान कच्छ का रण) तक तीर्थयात्रा का वर्णन भी महाभारत में आता है।
  3. प्रश्र उठता है कि क्या पेड़ वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के बगीचे में लगाए जानें चाहिए ? कुछ पेड़ जो वास्तु के अनुसार शुभ हैं और उनकी क्या उपयोगिता है नीचे वर्णित हैं : प्लक्ष अथवा [ ... ]
  4. प्रश्र उठता है कि क्या पेड़ वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के बगीचे में लगाए जानें चाहिए ? कुछ पेड़ जो वास्तु के अनुसार शुभ हैं और उनकी क्या उपयोगिता है नीचे वर्णित हैं : प्लक्ष अथवा [ ... ]
  5. ऋग्वेद के बाद के वैदिक साहित्य में सरस्वती नदी के विलुप्त होने का उल्लेख आता है , इसके अतिरिक्त सरस्वती नदी के उद्गम स्थल की 'प्लक्ष प्रस्रवन' के रुप में पहचान की गयी है, जो यमुनोत्री के पास ही अवस्थित है।
  6. ऋग्वेद के बाद के वैदिक साहित्य में सरस्वती नदी के विलुप्त होने का उल्लेख आता है , इसके अतिरिक्त सरस्वती नदी के उद्गम स्थल की 'प्लक्ष प्रस्रवन' के रुप में पहचान की गयी है, जो यमुनोत्री के पास ही अवस्थित है।
  7. प्राचीन वैदिक सरस्वती नदी का महाभारत में कई बार वर्णन आता हैं , बलराम जी द्वारा इसके तट के समान्तर प्लक्ष पेड़ (प्लक्षप्रस्त्रवण, यमुनोत्री के पास) से प्रभास क्षेत्र (वर्तमान कच्छ का रण) तक तीर्थयात्रा का वर्णन भी महाभारत में आता है।
  8. अग्नि पुराण में उल्लेख है कि उत्तर दिशा में शुभ प्लक्ष अर्थात् पिलखन लगाना चाहिए पिलखन को ही पाखड़ भी कहते है , पूर्व दिशा में वट अर्थात् न्यग्रोथ लगाना चाहिए, दक्षिण दिशा में गूलर तथा पश्चिम दिशा में अश्वत्थ उत्तम होता है ।
  9. बहुत ही फालतू ! संजय लीला बांसली की बेहद ही फालतू फॅंटेसी ! मुझे समझ मे नही आता इतने अच्छे डाइरेक्टर इतनी फालतू फिल्म बना सकते है अपना पैसा समय ओर मूड सब खराब करना है तो जरूर देखे किसी मल्टी प्लक्ष या सेनेमा घर मे!
  10. प्रकृति के सुरम्य वातावरण में स्थापित इस आश्रम के अन्दर वट , अश्वत्थ , शाल्मली , प्लक्ष , औदुम्बर और आम्र के छायादार वृक्षों के तलमूल में चैडे़ , स्वच्छ , समतल चबूतरे बने हुए थे , जो आचार्यश्री के द्वारा किये जाने वाले अध्यापन के समय आसन्दी का काम करते थे।
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