बकवासी का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- क्यों उनकी राजनीतिक पार्टी ऐसे हर बलात्कारी और बकवासी नेता के खिलाफ स्थानीय स्तर पर आवाज नहीं उठा रही ? और क्यों वे दिल्ली में इन बातों को जोड़कर कुछ-कुछ दिनों में ही सही , कुछ बोल क्यों नहीं रहे हैं ?
- देश के चौकन्ना मीडिया के चलते हुए आज नेताओं के जो बयान कैमरों पर साफ-साफ रिकॉर्ड हो रहे हैं , उसमें से भी हर उस बयान का बकवासी नेता खंडन कर देते हैं , जिनको लेकर उनकी थू-थू शुरू हो जाती है।
- यह बिलकुल सच है की बडबोले और बकवासी कुछ करते नहीं हैं , सिवा बडबडाने के ; जैसे की भाजपा वालों ने सत्ता में आने से पहले अयोध्या में राम-मंदिर बनवाने का खूब शोर किया पर सत्ता में आते ही सब भूल गये।
- मंच और माइक पाते ही हिंदी का लेखक जिस बेधड़क उत्साह और बकवासी प्रवाह में बकलोली बोलने लगता है , गोभी के पत्तों की सुखद हरियाली से घिरा, दो महिलाओं से रक्षित, बकलोली छांटने की मेरे भीतर भी कुछ वैसी ही सुखद घुमड़न उमड़ रही थी.
- जिन राजनेताओं , पत्रकारों , और व्यक्तियों को संत आसाराम पर आस्था नहीं उन के लिये भी यह जरूरी है कि कम से कम वह देश के कानून में ही आस्था रखें और अपना गैर कानूनी बकवासी किस्म का प्रचार बन्द करें जब तक कोर्ट संत आसाराम को आरोपी नहीं घोषित कर दे।
- हां , अपना फेट आईने में चौबीसों घंटे चौकन्ना ज़रूर दीखता रहता है, और कहें तो कायदन वही दिखता है बाकी तो बकते रहने के पैदाइशी बकवासी संस्कार हैं, कान पर जनेऊ डालकर धोती से दूर गिराने की तरह- एक डेढ़ सौ का कुनबा होता है उसे रिझाने, और कुछ उसी तरह से एक दूसरे कुनबे को खौरियान- चिढ़ाने मुंह से झड़ते रहते हैं.
- उसकी इस फितूरी और बकवासी , उसकी चुहलभरी तर्ज और उससे भी बढ कर उसका कौवे की तरह तिरछी दृष्टि से बीच बीच में मेरे क्रोध के अप्रत्याशित उफान को मापने की चिर परिचित चेष्टा करना , इन सबसे मेरे भीतर एक आग सी सुलगने लगी थी , पर फिर भी उसका जोश बैठने की उम्मीद में मैने चेहरा भावशून्य और प्रतिक्रियाहीन बनाए रखा।
- कैसे भारत की जहरीली हवा साफ हो और कैसे इस किस्म के पचीस-पचास बकवासी लोग देश के वक्त को बर्बाद करने के ओवरटाईम काम से बेदखल किए जाएं , और कैसे गांधी के नामलेवा इस लोकतंत्र में गांधीवाद और लोकतांत्रिक तरीके से आपस में बातचीत हो सके , इसके बारे में इन गिरोहबंदियों से आजाद होकर इस देश को व्यापक जनकल्याण के रास्ते निकालने चाहिए।
- ब्लॉग पर साहित्य की सार्थकता के सन्दर्भ में हिंदी के वहुचर्चित व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय का मानना है कि “ब्लॉग तो एक माध्यम है और आप यह भी जानते हैं की जैसे पत्रिकाओं में बकवासी साहित्य भी प्रकाशित होता है वैसे ही ब्लॉग भी बहुतों के लिए दिल बहलाव का माध्यम है - कुछ भी , चिंतन विहीन, सतहीय भी बहुत आता है ब्लॉग के माध्यम से&
- अब आप समझ गये होंगे कि मै कितना कंफ्यूज्ड किस्म का बकवासी इंसान हूं साथ मे एक पत्नि और बच्चा भी है उनका भी ख्याल रखना है अपनी प्रयोगधर्मिता के बीच मे वें बेचारे हर बार पीसते रहते हैं , पत्नि की चुप्पी और बच्चे का अपने आप ने खोए रहना कई बार मुझे हैरत मे डाल देता है कि आखिर मै कर क्यां रहा हूं।