बड़वानल का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- प्रचंड बड़वानल की भाँति पापों को भस्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अणिमादिक अष्ट महासिद्धियों तथा चंचल नेत्रों वाली देवकन्याओं से शिव विवाह समय में गान की गई मंगलध्वनि सब मंत्रों में परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित , सांसारिक दुःखों को नष्ट कर विजय पाएँ।
- धैर्य-पयोनिधि - धीरज का समुद्र , बड़वानल - समुद्र में लगने वाली आग या ताप, दावानल - जंगल की आग, चित्ताकाश - चित्त का आकाश, बिलो - बिलोना - मथना, मेधाच्छन्न - बादलों से भरी हुई, अमा-रजनी - अमावस्या की रात, अलक्ष्य - अप्रकट या अदृष्य।
- धैर्य-पयोनिधि - धीरज का समुद्र , बड़वानल - समुद्र में लगने वाली आग या ताप, दावानल - जंगल की आग, चित्ताकाश - चित्त का आकाश, बिलो - बिलोना - मथना, मेधाच्छन्न - बादलों से भरी हुई, अमा-रजनी - अमावस्या की रात, अलक्ष्य - अप्रकट या अदृष्य।
- आदरणीय अमिताभ त्रिपाठी ' अमित' जी सादर अभिवादन ! पीड़ा की अनछुई तरंगे जब मानस-तट से टकरातीं कुछ फेनिल टीसें बिखराकर आस-रेणु भी संग ले जातीं इस तरंग-क्रीड़ा से मन को बहला तो लेता हूँ फिर भी धैर्य-पयोनिधि का इक आँसू सौ बड़वानल बो सकता है हाँ!
- या जैसे आपकी और सब बातें कल्पित हैं वैसे ही यह उपाधि भी ? आपके वारिधि होने का एक प्रबल प्रमाण यह तो अवश्य है कि इन निर्दोष ब्राह्मणों के लिए कपोलकल्पित कटूक् ति रूप बड़वानल का प्रयोग आपने खूब ही किया है और यह बात आपको शोभा भी देती है।
- जीवन में चारो तरफ फैली यह आंच- जठरानल , बड़वानल और प्रेमागनि व क्रोधाग्नि , जिससे हर इन्सान अपने अपने तरीके से आजीवन ही लड़ता रहता है, राहत ढूंढता है- जाने किन-किन विकारों की तीव्रता और झुलस लिए हुए होती है और हम सब अपने अपने स्तर पर, अपने-अपने तरीके से इन विचारों और अनुभवों के, जीवन के कटु सत्यों के प्रेशर-वाल्व को रिलीज करने की कोशिश में आजीवन ही लगे रहते हैं ।
- जीवन में चारो तरफ फैली यह आंच- जठरानल , बड़वानल और प्रेमागनि व क्रोधाग्नि , जिससे हर इन्सान अपने अपने तरीके से आजीवन ही लड़ता रहता है, राहत ढूंढता है- जाने किन-किन विकारों की तीव्रता और झुलस लिए हुए होती है और हम सब अपने अपने स्तर पर, अपने-अपने तरीके से इन विचारों और अनुभवों के, जीवन के कटु सत्यों के प्रेशर-वाल्व को रिलीज करने की कोशिश में आजीवन ही लगे रहते हैं ।
- सिगरेट ! कुंठे की चिमनी जलती-बुझती चिंगारी निगलती जाती है सबकुछ बड़वानल के सादृश्य उसके पास भी अब बहुत कुछ नहीं बचा कितने दिन हुये इस भस्म से दोस्ती के ! क्या साथ देती है अपने में समाहित करके ! जब से मिली है रूतबा बन गया है समाज में लोगों की दया मुफ़त में मिलती है वो समझता था सबमें स्वार्थ है पर वो गलत था वो क्या कोई सिगरेट को स्वार्थी कह सकता है !