मलय पवन का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- मई भ्रमर महकती कलियों का कलियों तक जाती गलियों का गलियों में बिखरे यौवन का यौवन में डूबे तन मन का जिसे छूने भर से हलके हलके कोई मलय पवन सी बह निकले यौवन वही सराहा जाता . ..
- यह कैसा वसन्त है जो शीत के डर से कांप रहा है ? क्या कहा था विद्यापति ने- ' सरस वसन्त समय भल पाओलि दछिन पवन बहु धीरे ! नहीं मेरे कवि , दक्षिण से मलय पवन नहीं बह रहा।
- सागर की लहरे न उफनती फूल न बन पाते अंगारे मलय पवन तूफान न बनता नहीं गूंजती धनु टंकारे शंखनाद कर यदि पौरुष को , चिर निद्रा से मैं न जगाता तो विप्लव की ज्वाला ना , लहराती हुई गगन पर जाती मैं शब्दों को .....
- बार -बार मन में उठे उमंग की तरंग फागुनी बयार मद भरे अंग- अंग है , रग- रग में मलय पवन भरे सुवास आज पग-पग पर बिछा राग- रंग है | कंचुकी की डोरी कस दी भौजी ने इतनी क़ि तंग हुए वसन से गोरी तंग-तंग है |
- कहीं टूट ना जाये मेरी आस उफ़ . ...तुम्हारी आवाज़ उफ़ तुम्हारी आवाज़ क्या सुनी जैसे रात में दिन निकल आया चाँद जैसे सूरज बन गया घुटी हुई सी हवा अनायास ही मलय पवन सी मंद-मंद बहने लगी बाज़ार में चमकते बल्ब जैसे दिवाली के दिए जल उठे हों और हाँ तुम्हारी आवाज़....
- नीरस हुआ मधुकर का गुंजन , निर्गंध हो गई मलय पवन, तपन कर रहा है अब चंदन, पतझड़ ले आया निर्मोही हेमंत, जीवन में बसंत ले आओ ना, सुन तो ऐ मनमीत! फ़िर आंखों से बोलो ना!!! घंटी का घुनकना घंटी का घुनकना धड़कनें बहकना, मुखड़े की लालिमा, कि सुनते हैं उनसे बात हुई है …
- आ वसन्त ! खेलो होली ! मंथर गति से मलय पवन आ सौरभ से नहला जाता , कुहू-कुहू करके कोकिल जब मंगल गान सुना जाता ! हरित स्वर्ण श्रृंगार साज जब अवनि उमंगित होती थी , स्वागत को ऋतुराज तुम्हारे सुख स्वप्नों में खोती थी ! भर फूलों में र. .. देर तक देखती रही ... दूर तक देखती रही .....
- अमरदीप गौरव उनसे हुई मुलाकातों को याद करतें हैं जिंदगी के रास्तें में एक चौराहे पर आकर कभी हम उन्हें तो कभी हम उनसे हुई मुलाकातों को याद करतें हैं कभी समंदर के किनारे तो कभी पगडंडियों पर हम यूं ही ठमक जातें हैं शीतल मलय पवन में आती उनकी आवाजों में हम यूं ही बहे चले जातें हैं यूं ही खोये चले जातें [ ...] मेरी कवितायेँ
- यह तो कहो रोशनी का बहुत पीछे छूटा एक नन्हा सा कतरा कितनी दूर तक मेरी राह रोशन कर पायेगा यह तो कहो ! दूर बादल की आँख से टपकी बारिश की एक नन्हीं सी बूँद सहरा से सुलगते मेरे तन मन को कितना शीतल कर ... होली में .... बहकी बहकी हर कली है होली में महकी महकी हवा चली है होली में, उन्मादों कि घटा घनेरी घिर आई मलय पवन में चंवर झली है होली में, अमरैय्या में कुहूँ कुहूँ करती क...
- यह तो कहो रोशनी का बहुत पीछे छूटा एक नन्हा सा कतरा कितनी दूर तक मेरी राह रोशन कर पायेगा यह तो कहो ! दूर बादल की आँख से टपकी बारिश की एक नन्हीं सी बूँद सहरा से सुलगते मेरे तन मन को कितना शीतल कर ... होली में .... बहकी बहकी हर कली है होली में महकी महकी हवा चली है होली में , उन्मादों कि घटा घनेरी घिर आई मलय पवन में चंवर झली है होली में , अमरैय्या में कुहूँ कुहूँ करती क. .. शक्ति , सामर्थ्य और कारवां