मुर्गाबी का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- नार्वे में भारत नार्वे साहित्य सेमिनार और सांस्कृतिक समारोह धूमधाम से संपन्न , मुर्गाबी , गुडिया का घर और सौन्दर्य के देश में का लोकार्पण संपन्न भारतीय नार्वेजीय सूचना और सांस्कृतिक फॉरम के तत्वावधान में १ ६ अगस्त को वाइतवेत यूथ सेंटर ओस्लो , में धूमधामधाम से संपन्न हुआ।
- लखनऊ विश्वविद्यालय में हिन्दी में हेनरिक इबसेन और शरद आलोक एक साथ लखनऊ विश्व विद्यालय के डी पी सभागार में हेनरिक इबसेन की दो अनुदित कृतियों ' मुर्गाबी और ' गुडिया का घर ' और सुरेशचंद्र शुक्ल ' शरद आलोक ' कृत ' रजनी ' का लोकार्पण प्रसिद्ध कथाकार एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संसथान के निदेशक सुधाकर अदीब ने किया।
- लखनऊ विश्वविद्यालय में हिन्दी में हेनरिक इबसेन और शरद आलोक एक साथ लखनऊ विश्व विद्यालय के डी पी सभागार में हेनरिक इबसेन की दो अनुदित कृतियों ' मुर्गाबी और ' गुडिया का घर ' और सुरेशचंद्र शुक्ल ' शरद आलोक ' कृत ' रजनी ' का लोकार्पण प्रसिद्ध कथाकार एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संसथान के निदेशक सुधाकर अदीब ने किया।
- डुब्ब से कोई रेवा मछली , भेड़ और बकरी के खुर के गोल निशान के कीचड़ वाले गुपची में , तैरते मटमैले पानी के कोटर में एक मेंढक ताकता है अनझिप आँखों से किसी पनियल फतिंगे के पारदर्शक डैने को , कोई मुर्गाबी हरियाये घास के झुरमुट में गड़प चोंच डालती पकड़ती है चारा फिर उड़ जाती है इन्हीं पेड़ों में से कहीं ।
- शरद आलोक द्वारा रचित १ ९ ८ ४ में लिखी कविताओं का संग्रह ' रजनी ' ( २ ०० ९ ) और हेनरिक इबसेन के अनुदित नाटकों : ' गुरिया का घर ' तथा मुर्गाबी का लोकार्पण उत्तर प्रदेश हिन्दी संसथान के निदेशक सुधाकर अदीब ने अनेक लेखकों के साथ लखनऊ विश्व विद्यालय के डी पी ऐ सभागार में आज २२ april २ ०० ९ को अपरान्ह ४ बजे करेंगे।
- एक उदाहरण , जब मैंने भूख को भूख कहा प्यार को प्यार कहा तो उन्हें बुरा लगा जब मैंने पक्षी को पक्षी कहा आकाश को आकाश कहा वृक्ष को वृक्ष और शब्द को शब्द कहा तो उन्हें बुरा लगा परन्तु जब मैंने कविता के स्थान पर अकविता लिखी औरत को सिर्फ़ योनि बताया रोटी के टुकड़े को चांद लिखा स्याह रंग को लिखा गुलाबी काले कव्वे को लिखा मुर्गाबी तो वे बोले- वाह ! भई वाह !! क्या कविता है भई वाह !! - अमरजीत कौंके
- तुम्हारे प्रेम ने उछाल फेंका मुझे अचरज की एक धरती पर लिफ़्ट में प्रवेश करती हुई किसी स्त्री की ख़ुशबू की तरह उसने घात लगा कर हमला बोला मुझ पर उसने मुझे चकित किया एक कहवाघर में एक कविता पर बैठे मैं भूल गया कविता उसने मुझे चकित किया मेरी हथेली की रेखाएं पढ़ते हुए मैं अपनी हथेली भूल गया वह मुझ पर गिरा किसी गूंगी बहरी जंगली मुर्गाबी की तरह उसके पंख उलझ गए मेरे पंखों से उसकी कराहें उलझ गईं मेरी कराहों से .