मुसन्निफ़ का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- दूसरी ज़बानों के नाविलनिगार ‘मेरा नाम लाल ' की महीन और ‘अंडरवर्ल्ड' की ज़हीन, महत्वाकांक्षी यात्राओं पर निकल जाते हैं, हमारी ज़बान का मुसन्निफ़ (राइटर) अभी भी मुतवस्त (औसत दर्जा) की तरबियत (शिक्षा-दीक्षा) के रघ्घुओं और रेहनों के तरक़्क़ीपसंद मुतालों (पुस्तक-पठन) में खुशमंद और बंद रहता है..
- दूसरी ज़बानों के नाविलनिगार ‘मेरा नाम लाल ' की महीन और ‘अंडरवर्ल्ड ' की ज़हीन, महत्वाकांक्षी यात्राओं पर निकल जाते हैं, हमारी ज़बान का मुसन्निफ़ (राइटर) अभी भी मुतवस्त (औसत दर्जा) की तरबियत (शिक्षा-दीक्षा) के रघ्घुओं और रेहनों के तरक़्क़ीपसंद मुतालों (पुस्तक-पठन) में खुशमंद और बंद रहता है..
- ये हैं तौरेत के वाकेआती कुछ टुकड़े जो कि अनपढ़ मुहम्मद के कान में पडे हुए हैं उसे वे वोह मुसन्निफ़ के तौर पर वोह भी अल्लाह बन कर कुरआन तरतीब दे रहे हैं और इस महा मूरख कालिदास के इशारे को उसके होशियार पंडित ओलिमा सदियों से मानी पहना रहे हैं।
- ये हैं तौरेत के वाकेआती कुछ टुकड़े जो कि अनपढ़ मुहम्मद के कान में पडे हुए हैं उसे वे वोह मुसन्निफ़ के तौर पर वोह भी अल्लाह बन कर कुरआन तरतीब दे रहे हैं और इस महा मूरख कालिदास के इशारे को उसके होशियार पंडित ओलिमा सदियों से मानी पहना रहे हैं।
- वाक़-ए कर्बला में आपकी उमरे मुबारक चार साल की थी , इब्ने हजर हेसमी ( अलसवाइक़ अलमुहर्रिक़ा के मुसन्निफ़ ) का बयान है कि इमाम मुहम्मद बाक़र अलै 0 से इल्म व मआरिफ़ , हक़ाइक़े अहकाम , हिकमत और लताइफ़ के ऐसे चश्मे फूटे जिनका इनकार बे बसीरत या बदसीरत व बेबहरा इन्सान ही कर सकता है।
- आप मुफ़्ती भी थे और हकीम भी , आरिफ़ भी थे और समाज के रहबर भी , ज़ाहिद भी थे और एक बेहतरीन सियासत मदार भी , क़ाज़ी भी थे और मज़दूर भी ख़तीब भी थे और मुसन्निफ़ भी ख़ुलासा ये कि आप पर एक जिहत से एक इंसाने कामिल थे अपनी तमाम ख़ूबसूरती और हुस्न के साथ।
- नीज़ आठवें क़र्न में लिखी जाने वाली किताब “ अलसवाइक़ अलमुहर्रिक़ा ” के मुसन्निफ़ ने लिखा है किः इमाम सादिक़ से इस क़दर इलम सादिर ( ज़ाहिर ) हुए हैं कि लोगों की ज़बानों पर था यही नहीं बल्कि बकि़या फि़रक़ों के पेशवा जैसे याहया बिन सईद , मालिक , सुफि़यान सूरी , अबुहनीफ़ा वग़ैरा आपसे रिवायत नक्ल करते थे।
- सिंध अरकाईओज़ के डायरेक्टर इक़बाल नफीस ख़ान की मदद से मुसन्निफ़ हाकिम अली शाह बुख़ारी ने इस प्राजैक्ट का क़रीब से मुताला किया और एक ऐसी किताब तहरीर की जो ना सिर्फ स्कालरों बल्कि आम कारईन के लिए भी दिलचस्पी का बाइस बने और कलहोड़ा दौर के हवाले से पढ़ने वालों के ज़हन में सिंध के क़दीम और जदीद तर्ज़-ए-तामीर की मुख़तलिफ़ जहतों को रोशन करे।
- सैय्यद रज़ी ( नहजुल बलाग़ा के मुसन्निफ़ ) फ़रमाते हैं : ये क़ुरआन की एक बेहतरीन तफ़सीर है और क़ुरआन से एक लतीफ़ इस्तिमबात है कि जब इमाम अली ( अ 0 ) से इस आयत “ बे शक अल्लाह अद्ल एह्सान और क़राबतदारों के हुक़ूक़ की अदाएगी का हुक्म देता है ” के बारे में सवाल किया गया तो आप ने जवाब दिया “ अद्ल इन्साफ़ है और एह्सान नेकी है ”
- रखना उनके लिए बहुत मुश्किल था | फिर भी साहिर की हमेशा ये कोशिश रहती थी कि कम ही क्यों न हो लेकिन मुसन्निफ़ को वक़्त पर उसका मेहनताना ज़रूर मिलना चाहिए | एक बार वे किसी भी मुसन्निफ़ को वक़्त पर पैसे नहीं भेज सके और ग़ज़लकार शमा ‘लाहौरी ' साहब को पैसे की सख्त ज़रूरत थी | वे कड़ाके की ठंड में कांपते हुए साहिर के घर पहुंचे और हिचकिचाते हुए दो ग़ज़लों के पैसे मांगे | साहिर उन्हें बड़ी इज्ज़त से अंदर ले गए.