मुस्तहक़ का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- क्यों कि यह एतिमाद तुम्हारी तवील अन्दरूनी उलझनों को खत्म तर देगा और सब से जियादा तुम्हारे एतिमाद के वह मुस्तहक़ हैं जिन के साथ तुम ने अच्छा सुलूक किया हो , और सब से ज़ियादा बे एतिमादी के मुस्तहक़ वह हैं कि जिन से तुम्हारा बरताव अच्छा न रहा हो।
- क्यों कि यह एतिमाद तुम्हारी तवील अन्दरूनी उलझनों को खत्म तर देगा और सब से जियादा तुम्हारे एतिमाद के वह मुस्तहक़ हैं जिन के साथ तुम ने अच्छा सुलूक किया हो , और सब से ज़ियादा बे एतिमादी के मुस्तहक़ वह हैं कि जिन से तुम्हारा बरताव अच्छा न रहा हो।
- 259 - कितने ही लोग ऐसे हैं जिन्हें नेमतें देकर रफ़्ता रफ़्ता अज़ाब काा मुस्तहक़ बनाया जाता है और कितने ही लोग ऐसे हैं जो अल्लाह की परदापोशी से धोका खाए हुए हैं और अपने बारे में अच्छे अलफ़ाज़ सुनकर फ़रेब में पड़ गए और मोहलत देने से ज़्यादा अल्लाह की जानिब से कोई बड़ी आज़माइश नहीं।
- लेकिन यह उसी वक़्त तक है जब किसी के बारे में ज़बान खोलना या हाथ उठाना “ ार “ ाुमार हो वरना अगर इन्सान इस अम्र का मुस्तहक़ हो गया है के उसके किरदार पर तन्क़ीद न करना या उसे क़रार वाक़ेई सज़ा न देना दीने ख़ुदा की तौहीन है तो कोई “ ाख़्स भी दीने ख़ुदा से ज़्यादा मोहतरम नहीं है।
- अमीरूल मोमेनीन ( अ 0 ) ने ख़ेबाब के इसी किरदार की तरफ़ इशारा किया है के वह इन्तेहाई मसाएब के बावजूद ख़ुदा से राज़ी रहे और एक हर्फ़े शिकायत ज़बान पर नहीं लाए और ऐसा ही इन्सान वह होता है जिसके हक़ में तौबा की बशारत दी जा सकती है और वह अमीरूल मोमेनीन ( अ 0 ) की तरफ़ से मुबारकबाद का मुस्तहक़ होता है।
- याद रखो के ग़ैर मुस्तहक़ के साथ एहसान करने वाले और ना अहल के साथ नेकी करने वाले के हिस्से में कमीने लोगों की तारीफ़ और बदतरीन अफ़राद की मदह व सना ही आती है और वह जब तक करम करता रहता है जेहाल ( जाहिल ) कहते रहते हैं के किस क़द्र करीम और सख़ी है यह “ ाख़्स , हालाँके अल्लाह के मामले में यही “ ाख़्स बख़ील भी होता है।
- जो शख़्स ग़ैर मुस्तहक़ ( कुपात्र ) के साथ हुस्ने सुलूक ( सद व्यवहार ) बरतता है , और ना अहलों ( अयोग्यों ) के साथ एह्सान करता है , उस के पल्ले यही पड़ता है कि कमीने और शरीर ( दुष्ट ) उस की मद्हो सना ( प्रशंसा ) करने लगते हैं , और जब तक वह देता गिलाता रहे जाहिल कहते रहते हैं कि इस की हाथ कितना सख़ी ( दानी ) है।
- इन बातों की दरयाफ़्त और तस्दीक़ का काम बहुत तहक़ीक़ और मेहनत चाहता है . आरिफ़ साहब इस के लिए हमारे शुक्रिया के मुस्तहक़ (अधिकारी) है.यक़ीन है कि आप सब इन दिलचस्प अदाबी बातों से महज़ूज़-ओ-मुस्तफ़ीद(आनन्द और फ़ायदा उठाये) होंगे.यहाँ यह कहना नामुनासिब नहीं कि आरिफ़ साहब की तहक़ीक़ को पढ़ कर कई उर्दू-दोस्त अहबाब ने इस में इज़ाफ़ा किया है और इस सिलसिले को मज़ीद दिलचस्प(और ज्यादा दिलचस्प) बनाया है .मैने इन इज़ाफ़ों को भी यहाँ शामिल कर लिया है .मै इन दोस्तों का भी मम्नून(आभारी) हूँ.
- -2 - तारीख़ का मसलमा है के अमीरूल मोमेनीन ( अ ) जब बैतुलमाल में दाखि़ल होते थे तो सूई तागा और रोटी के टुकड़े तक तक़सीम कर दिया करते थे और उसके बाद झाड़ू देकर दो रकअत नमाज़ अदा करते थे ताके यह ज़मीन रोज़े क़यामत अली ( अ ) के अद्ल व इन्साफ़ की गवाही दे और इस बुनियाद पर आपने उस्मान की अताकरदा जागीरों को वापसी का हुक्म दिया और सदक़े के ऊंट उस्मान के घर से वापस मंगवाए के उस्मान किसी क़ीमत पर ज़कात के मुस्तहक़ नहीं थे।
- 88 . कितने ही लोग ऐसे हैं जिन्हें नेमतें ( वर्दान ) दे कर रफ़्ता रफ़्ता ( शनै : शनै : ) अज़ाब का मुस्तहक़ ( दण्ड का पात्र ) बनाया जाता है , और कितने ही लोग ऐसे हैं जो अल्लाह की पर्दापोशी ( गोपनीयता ) से धोका खाए हुए हैं , और अपने बारे में अच्छा अल्फ़ाज़ ( शब्द ) सुन कर फ़रेब ( धोके ) में पड गए हैं , और मोहलत देने से ज़ियादा अल्लाह की जानिब ( ओर ) से कोई बड़ी आज़माइश ( परीक्षा ) नहीं है।