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मूर्छना का अर्थ

मूर्छना अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. दूसरे शब्दों में यह काया कल्प की वह सामर्थ्य है जो जीर्णता को नवीनता में- मूर्छना को चेतना में- शिथिलता को सक्रियता में तथा मरण को जीवन में परिवर्तन करती है ।।
  2. अपने साथ वहां रह रहे जलजंतुओं व वनस्पतियों से उसने जाना कि सैकड़ों साल की मूर्छना के बाद उसे होश आया था और वह एक ऐसी दुनिया में है जहां परिवर्तन बहुत कम घटित होते हैं।
  3. ऐसी प्राणद , प्रज्ञापोषक रचनायें जन सामान्य पाठक और प्रबुद्ध समाज तक पहुँचें , पढ़ी जायें तो देर-सवेर हिन्दीप्रेमी जनों मातृभाषा राष्ट्रभाषा अनुरागी प्राणों को मूर्छना से उबारती हुई आत्मबोध की ओर अग्रसर करेंगी , ऐसा विश्वास है।
  4. दिव्य महारास के उस भोरहरे में देह-मुक्ति का वह समूह-गान मूर्छना की गति पकड़ कर थिरक रही थीं देह से अदेह होती हुयी अनेक पारदर्शी आकृतियाँ मायापुर की मायाविनी बरसात में उड़ रहे थे अनेक देह-वस्त्र आकाश में मुक्त होकर देह-तृष्णाओं से |
  5. अभी नींद-उनींद में था गौरांग महाप्रभु का गाँव था सामने था और रोशनियों में जगमग कृष्ण-चैतन्य का मंदिर मूर्छित भोरहरे के महा-रास में मूर्छना में महाप्रभु के भक्तजन मूर्छना में महाचेतना देह तजती देहाकृतियाँ देह से अदेह होती नदी भी बेसुध अभी तक ,
  6. अभी नींद-उनींद में था गौरांग महाप्रभु का गाँव था सामने था और रोशनियों में जगमग कृष्ण-चैतन्य का मंदिर मूर्छित भोरहरे के महा-रास में मूर्छना में महाप्रभु के भक्तजन मूर्छना में महाचेतना देह तजती देहाकृतियाँ देह से अदेह होती नदी भी बेसुध अभी तक ,
  7. सप्त सुरन तीन ग्राम . ... सप्त सुरन तीन ग्राम गावो सब गुणीजन इक्कीस मूर्छना तान-बान को मिलावो-२ औढ़व संकीरण सुर सम्पूरण राग भेद अलंकार भूषण बन-२ राग को सजावो...सप्त सुरन सा सुर साधो मन, रे अपने रब को ध्यान-२ गांधार तजो गुमान-२ मध्यम मोक्ष पावो पंचम
  8. हमें तो उतना ही मधुर लगा जितना तानसेन ने गाया।सप्त सुरन तीन ग्राम . ...सप्त सुरन तीन ग्राम गावो सब गुणीजनइक्कीस मूर्छना तान-बान को मिलावो-२औढ़व संकीरण सुर सम्पूरण राग भेदअलंकार भूषण बन-२राग को सजावो...सप्त सुरनसा सुर साधो मन, रे अपने रब को ध्यान-२गांधार तजो गुमान-२मध्यम मोक्ष पावोपंचम परमेश्वर, धैवत धरो
  9. सम्भवत : इसका प्रमुख कारण वाद्यों में सारिका का प्रयोग (9वीं शताब्दी में सर्वप्रथम किन्नरी वीणा में सारिका का प्रयोग किया गया) प्रारंभ होना तथा षडज और मध्यम ग्राम के साथ ही मूर्छना पद्धति का तिरोहित होना (11वीं-12वीं शती) और षडज स्वर का स्थिर हो जाना है जिसके फलस्वरूप चिकारी इत्यादि की व्यवस्था का आविष्कार हुआ और किन्नरी, त्रितंत्री और चित्रा वीणा के नये रूप सामने आाये।
  10. जब तक हिन्दी भाषासमाज की मानसिकता कई ढेरों-ढेर इच्छाओं ( ? ) से उबरती नहीं है , तब तक आपको व हमें यक्ष की तरह युधिष्ठिर के आने की प्रतीक्षा में अपने प्रश्नों के साथ जलाशय की रखवाली जिस किसी तरह करते रहने को शापित रहना होगा और युधिष्ठिरों का पथ प्रशस्त करने के लिए स्वयं बुरे बन कर अन्य ` प्यासों ' को मूर्छना की कसैली औषध पिलाते रहना होगा।
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