यगण का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- विषम चरणों के अन्त में जगण I S I का प्रयोग वर्जित माना जाता है तथा सम चरणों के अन्त में मगण I S S या यगण S S S का प्रयोग होना चाहिए।
- गण 8 प्रकार के होते हैं - यगण ( ।ऽऽ ) , मगण ( ऽऽऽ ) , तगण ( ऽऽ। ) , रगण ( ऽ।ऽ ) , जगण ( ।ऽ। ) , भगण ( ऽ।।
- हिन्दी साहित्य में ' यमाताराजभानसलगा' यानि यगण (122), मगण (222), तगण (221), रगण (212), जगण (121), भगण (211), नगण (111) और सगण (112) रूप में जो गण हैं वो उर्दू के अरकान से कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं रखते हैं।
- रसैः रुद्रैश्छिन्ना यमनसभला गः शिखरिणी जिसमें यगण , मगण, नगण, सगण, भगण और लघु तथा गुरु के क्रम से प्रत्येक चरण में वर्ण रखे जाते हैं और 6 तथा 11 वर्णों के बाद यति होती है, उसे शिखरिणी छन्द कहते हैं;
- यगण मगण तगण रगण जगण भवण नगण सगण हो आठ गण यति गति ज्ञान , तब कहलाए चरण तब कहलाए चरण, तुकान्त रोला मात्रा हो चरण भाव-युक्त व मात्रा पूरी चौबीस हो बुरा फंसा “कविराज” नचायेंगे तुझको गण कुण्डलिया बाद में सिखना पहले मगण-यगण आपका शिष्य गिरिराज जोशी “कविराज”
- प्रसंगवश बताना चाहूंगी कि यमाताराजभानसलगा इसी श् लोक की तरह हिन्दी सूत्र है , जिसका अर्थ है -यमाता अर्थात एक लघु दो गुरु का यगण होता है , फिर मातारा अर्थात मगण में तीनों मात्राएँ गुरू , फिर ताराज अर्थात तगण में दो गुरु एक वर्ण लघु ।
- एक छोटा सा उदाहरणः- ' बहरे-मुतकारिब मुसम्मन ' जिसमें 122 ( फऊलुन ) - 4 बार और संस्कृत वर्ण वृत्त ' भुजंगप्रयात ' में भी 8 प्रति चरण ' यगण ' ( ।ऽऽ ) चार बार होते हैं जिसका अर्थ है कि उर्दू बहर और संस्कृत वृत्त में साम्य है।
- एक छोटा सा उदाहरणः- ' बहरे-मुतकारिब मुसम्मन ' जिसमें 122 ( फऊलुन ) - 4 बार और संस्कृत वर्ण वृत्त ' भुजंगप्रयात ' में भी 8 प्रति चरण ' यगण ' ( ।ऽऽ ) चार बार होते हैं जिसका अर्थ है कि उर्दू बहर और संस्कृत वृत्त में साम्य है।
- यों तो प्रत्येक काव्यरचना में वही दो प्रकार की मात्राएँ होती हैं , किन्तु संस्कृत में इन दो मात्राओं को तीन-तीन के अलग अलग प्रकार के ' सेट ' ( वर्गों ) में बाँट दिया गया है ( मात्राओं को अलग अलग ढंग से प्रयोग करने के निर्धारित इन वर्गों को गण कहा जाता है ) तो कई गण बने हुए हैं , जैसे यगण मगण तगण इत्यादि।