युयुत्सा का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- दूसरी तरफ हिन्दी की अनेक लघु पत्रिकाओं युयुत्सा , लहर, आधुनिका, दर्पण, निवेदिता, आरंभ, नईधारा आदि के अतिरिक्त मैथिली पत्रिकाओं ने राजकमल विशेषांक प्रकाशित किए, जिनमें प्रकाशित सभी लेख उन अपशब्दों का विरोध करते हैं और राजकमल की प्रशंसा।
- आज युवा , नरेन्द्र नाथ दत्त तो हैं, लेकिन ना उस नरेन्द्र में विवेकानंद बनने की युयुत्सा है और ना ही किसी परमहंस में आज देश-हित को निज-हित से ऊपर मानकर किसी नरेन्द्र को विवेकानंद बनने की दीक्षा देने का साहस ही शेष है।
- उनकी रचना में उपलब्ध के साथ सामंजस्य , सहयोग या संतुलन का अभाव है, लेकिन यह अभाव भी किसी वाचालता में ख़ुद को ज़ाहिर नहीं करता, बल्कि नमी, व्याकुलता, वैराग्य, यथार्थ की निरुपायता और एक असमाप्त मननशील युयुत्सा की मिलीजुली रौशनी से उसकी आवाज़ बनती है.
- लेकिन भाषायी ज़मीन पर क़ब्ज़े की युयुत्सा तब ख़ासी सक्रिय हो उठती है जब मुक़ाबले में हिन्दी की पुरानी जानी दुश्मन उर्दू खड़ी हो जाए , और कुछ नहीं बस अपना खोया हुआ नाम ही माँग ले तो यूँ लगता था गोया क़यामत बरपा हो गई।
- लेकिन भाषायी ज़मीन पर क़ब्ज़े की युयुत्सा तब ख़ासी सक्रिय हो उठती है जब मुक़ाबले में हिन्दी की पुरानी जानी दुश्मन उर्दू खड़ी हो जाए , और कुछ नहीं बस अपना खोया हुआ नाम ही माँग ले तो यूँ लगता था गोया क़यामत बरपा हो गई।
- लड़ाई ? क्या होगा उससे और किससे लड़ोगे तुम ? उनके किले की दीवारें बेहद चिकनी और मज़बूत हैं , तुम चोट करते रहो उन पर और फोड़ लो अपना सिर वे द्वार नहीं खोलेंगे नहीं समझेंगे तुम्हारी भाषा और तुम्हारी युयुत्सा टूटती रहेगी हर क्षण ।
- मैं तो शायद तब भी अपने घर की चहारदीवारी के किसी कोने में ( ' सलाखों के बीच ' - शताब्दी : 1966 ) , डरी हुई ( ' डर ' - युयुत्सा : 1966 ) दुबकी हुई बैठी थी पर वह मेरी आँखों की चमक बन कर चहक रही थी।
- उनकी रचना में उपलब्ध के साथ सामंजस्य , सहयोग या संतुलन का अभाव है , लेकिन यह अभाव भी किसी वाचालता में ख़ुद को ज़ाहिर नहीं करता , बल्कि नमी , व्याकुलता , वैराग्य , यथार्थ की निरुपायता और एक असमाप्त मननशील युयुत्सा की मिलीजुली रौशनी से उसकी आवाज़ बनती है .
- उपनिषदों के नायक नचिकेता , उद्दालक, श्वेतकेतु, सत्यकाम था आरूणि आदि सबके सब युवा हैं युवा मन ही सपने सजाता है सपनो को सच करने साकार करने और अन्तिम परिणाम तक पहुँचाने की युयुत्सा रखता है कर्तृत्त्वाभिमान से विरत रहते हुए नियत कर्मों को निश्चित परिणाम तक पहुँचाने का सामर्थ्य मात्र युवा में ही है।
- और भी ना जाने क्या-क्या ? है कोई विकल्प किसी के पास ? आज युवा , नरेन्द्र नाथ दत्त तो हैं , लेकिन ना उस नरेन्द्र में विवेकानंद बनने की युयुत्सा है और ना ही किसी परमहंस में आज देश-हित को निज-हित से ऊपर मानकर किसी नरेन्द्र को विवेकानंद बनने की दीक्षा देने का साहस ही शेष है।