वन्दित का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- ऐसा देखकर जिनके कमलस्वरुपी चरण राजाओं से वन्दित थे ऐसे ब्राहमणदेव ने हर्ष के साथ दोनों पुत्रों का जन्म संस्कार करके गोड़ राज की सन्तान का कचनाधुरुवा और चौहान राज की सन्तान का “ रमई देव ” ऐसा नाम रक्खा ।।
- अर्थ : हे वीणा धारण करने वाली , अपार मंगल देने वाली , भक्तों के दुख हरने वाली , ब्रह्मा , विष्णु , महेश से वन्दित , कीर्ति और मनोरथ देने वाली , पूज्यवरा और विद्या देने वाली मां सरस्वती ! मैं तुम्हें नित्य नमन करता हूं।
- पुनः पुनः हिरण्यगर्भ की भूमि हो लय में , प्रलय का आधार तुम भी हो , सर्जक तुम भी हो ..देवत्व पर तुम्हारा भी सम-अधिकार है हे अन्धकार ! तुम्हारी निराकार शक्ति सहज ही विराजित है पूजित है वन्दित है अब मेरे जीवन में अन्धकार तुम्हारा भी अभिनन्दन है ..अभिनन्दन है ..संजीव गौतम
- इस दिन संपूर्ण प्राणियों को आश्रय प्रदान करने वाले , त्रैलोक्य वन्दित व पूजित शंख , चक्र , गदा , पद्मधारी श्री हरि , परमध्येय नीलोत्पलदलश्याम , पीताम्बरधारी , संपूर्ण मनोरथों को पूर्ण करने वाले , भक्त , प्राणधन , जीवन मृत्यु रूपी दुःखों का निवारण करने वाले परब्रह्म परमात्मा श्रीमन् नारायण का पूजन किया जाता है।
- भावार्थ : - कोसलपुरी के स्वामी श्री रामचंद्रजी के सुंदर और कोमल दोनों चरणकमल ब्रह्माजी और शिवजी द्वारा वन्दित हैं , श्री जानकीजी के करकमलों से दुलराए हुए हैं और चिन्तन करने वाले के मन रूपी भौंरे के नित्य संगी हैं अर्थात् चिन्तन करने वालों का मन रूपी भ्रमर सदा उन चरणकमलों में बसा रहता है॥ 2 ॥
- मार्ग शीर्ष मास की उदय व्यापिनी पूर्णिमा तिथि में संपूर्ण प्राणियों को आश्रय प्रदान करने वाले , त्रैलोक्य वन्दित व पूजित शंख , चक्र , गदा , पद्मधारी श्री हरि , परमध्येय नीलोत्पलदलश्याम , पीताम्बरधारी , संपूर्ण मनोरथों को पूर्ण करने वाले , भक्त , प्राणधन , जीवन मृत्यु रूपी दुःखों का निवारण करने वाले परंब्रह्म परमात्मा श्रीमन् नारायण का पूजन किया जाता है।
- स्वदेश के प्रति बलिदान की भावना जब जागे तब प्राणों के पुष्प माँ के चरणों में चढ़ाकर धन्यता का अनुभव करने का विचार मेरे और आपके मन में जब जागेगा तब फिर से यह भारत एक बार नहीं अनेक बार अनेक देशों के द्वारा जगदगुरु के रूप में वन्दित होगा और लोग यहाँ से प्रेरणा प्राप्त करने का प्रयत्न करेंगे : - स्वामी सत्यमित्रानंद .
- भावार्थ : - कुन्दपुष्प और नीलकमल के समान सुंदर गौर एवं श्यामवर्ण , अत्यंत बलवान् , विज्ञान के धाम , शोभा संपन्न , श्रेष्ठ धनुर्धर , वेदों के द्वारा वन्दित , गौ एवं ब्राह्मणों के समूह के प्रिय ( अथवा प्रेमी ) , माया से मनुष्य रूप धारण किए हुए , श्रेष्ठ धर्म के लिए कवचस्वरूप , सबके हितकारी , श्री सीताजी की खोज में लगे हुए , पथिक रूप रघुकुल के श्रेष्ठ श्री रामजी और श्री लक्ष्मणजी दोनों भाई निश्चय ही हमें भक्तिप्रद हों ॥ 1 ॥
- तुम रूप दो , जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो॥4॥ रक्त बीज का वध और चण्ड-मुण्ड का विनाश करने वाली देवि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो॥5॥ शुम्भ और निशुम्भ तथा धूम्रलोचन का मर्दन करने वाली देवि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो॥6॥ सबके द्वारा वन्दित युगल चरणों वाली तथा सम्पूर्ण सौभाग्य प्रदान करने वाली देवि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो॥7॥ देवि! तुम्हारे रूप और चरित्र अचिन्त्य हैं।