वाहिगुरु का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- अद्भुत चमत्कार था , उधर बसन्त लता दूर हो कर नीचे पालथी मार कर दोनों हाथ जोड़ कर कहने लगी , ' सच्चे पातशाह ! आप धन्य हो तथा मैं आप से बलिहारी जाती हूं | सतिनाम ! वाहिगुरु हे दाता ! आप ही तो अबला की लाज रखने वाले हो , दातार हो | '
- अद्भुत चमत्कार था , उधर बसन्त लता दूर हो कर नीचे पालथी मार कर दोनों हाथ जोड़ कर कहने लगी , ' सच्चे पातशाह ! आप धन्य हो तथा मैं आप से बलिहारी जाती हूं | सतिनाम ! वाहिगुरु हे दाता ! आप ही तो अबला की लाज रखने वाले हो , दातार हो | '
- रात-दिन भक्ति करते रहते | आप ने गांव से बाहर बरगद के नीचे त्रिण की झोंपड़ी बना ली | खाना-पीना भूल गया | नगरवासी अपने आप कुछ न कुछ दे जाते | इस तरह कहें कि उन्होंने रिजक की डोर भी वाहिगुरु के आसरे छोड़ दी | मोह , माया , अहंकार , लालच सब को त्याग दिया था | उसको भजन करते हुए काफी समय बीत गया |
- ईश्वर की कृपा से भक्त जी ने हर बात पर ब्राह्मणों को झूठा साबित कर दिया | वे बड़े शर्मिंदे हुए तथा रविदास जी यज्ञ में शामिल हुए | उसी दिन जब वापिस अपने मंदिर आए तो हुक्म करके सभी मूर्तियां गंगा में प्रवाह कर दीं तथा मंदिर में कीर्तन ही प्रधान कर दिया | आप दो समय सत्संग करते तथा सत्संग में वाहिगुरु का यश गाया जाता | भक्त रविदास जी के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से संगतें आतीं |
- जब वर्षा रुक गई | नगरवासी इकट्ठे हो कर भाई साईयां जी की तरफ चले | भाई जी को भेंट करने के लिए वस्त्र , चावल , गुड़ तथा नगद रुपए थालियों में रखकर हाथों में उठा लिए | जूह के बरगद के पेड़ के नीचे टपकती हुई छत्त वाली झोंपड़ी में साईयां बैठा वाहिगुरु का सिमरन कर रहा था , संगतों को आता देख कर पहले ही उठ कर दस कदम आगे हुआ | उसने दोनों हाथ ऊपर उठा कर चीख मारी , ' ठहर जाओ ! क्यों आ रहे हो , क्या बात है ? '