विरह व्यथा का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- जिनमें से एक थी- ' तुम क्यों आते नहीं, तुम्हारे स्वप्न हमें नित आते हैं, श्याम तुम्हारी विरह व्यथा में ब्रजजन सब अकुलाते हैं ऑंगन रोज़ रंगोली पूरुँ गीत सजाऊँ देहरी पर, श्याम सुनहरे मेघ तुम्हारे ऑंगन नया सजाते हैं'।
- कर्मकाण्ड हो या धर्म , दर्शन हो या न्याय, सौन्दर्य शास्र हो या भक्ति रचना, विरह व्यथा हो या अभिसार, राजा का कृतित्व गान हो या सामान्य जनता के लिए गया में पिण्डदान, सभी क्षेत्रों में विद्यापति अपनी कालजयी रचनाओं के बदौलत जाने जाते हैं।
- कर्मकाण्ड हो या धर्म , दर्शन हो या न्याय, सौन्दर्य शास्र हो या भक्ति रचना, विरह व्यथा हो या अभिसार, राजा का कृतित्व गान हो या सामान्य जनता के लिए गया में पिण्डदान, सभी क्षेत्रों में विद्यापति अपनी कालजयी रचनाओं के बदौलत जाने जाते हैं।
- प्रेमिका को भी देखिये पानी की मार्फत अपनी विरह व्यथा किस तरह एक राजस्थानी फिल्म में प्रदर्शित कर रही है-थाने देख्यां बिना , थाने निरख्यां बिना , म्हाने अन्न पानी नहीं भावे , अर्थात जब तक आपको देख न लूं , मुझे अन्न-पानी अच्छा नहीं लगता है।
- कर्मकाण्ड हो या धर्म , दर्शन हो या न्याय , सौन्दर्य शास्र हो या भक्ति रचना , विरह व्यथा हो या अभिसार , राजा का कृतित्व गान हो या सामान्य जनता के लिए गया में पिण्डदान , सभी क्षेत्रों में विद्यापति अपनी कालजयी रचनाओं के बदौलत जाने जाते हैं।
- कर्मकाण्ड हो या धर्म , दर्शन हो या न्याय , सौन्दर्य शास्र हो या भक्ति रचना , विरह व्यथा हो या अभिसार , राजा का कृतित्व गान हो या सामान्य जनता के लिए गया में पिण्डदान , सभी क्षेत्रों में विद्यापति अपनी कालजयी रचनाओं के बदौलत जाने जाते हैं।
- हां , क्योंकि ये ही सब चीज़ें तो प्यार हैं यह अकेलापन , यह अकुलाहट , यह असमंजस , अचकचाहट , आर्त , अननुभव , यह खोज , यह द्वैत , यह असहाय विरह व्यथा , यह अन्धकार में जाग कर सहसा पहचानना कि जो मेरा है वही ममेतर है
- लम्बी जुदाई ! !!! साढ़े तीन महीने के लम्बे ब्लॉग वियोग के बाद मौक़ा मिला है , की आज अपनी विरह व्यथा लिखी जाए ! सचमुच बड़ी ही दुसह दुख : द और दुस्वार होती है ब्लॉग जुदाई ! मायावी दुनिया की आपा धापी में ब्लॉग जगत के आत्मिक रस से ...
- अनुपमा बड़े आदमी की लड़की है , घर से संलग्न बगीचा भी है , मनोरम सरोवर भी है , वहाँ चाँद भी उठता है , कमल भी खिलते है , कोयल भी गीत गाती है , भौंरे भी गुंजारते हैं , यहाँ पर वह घूमती फिरती विरह व्यथा का अनुभव करने लगी।
- साढ़े तीन महीने के लम्बे ब्लॉग वियोग के बाद मौक़ा मिला है , की आज अपनी विरह व्यथा लिखी जाए! सचमुच बड़ी ही दुसह दुख:द और दुस्वार होती है ब्लॉग जुदाई! मायावी दुनिया की आपा धापी में ब्लॉग जगत के आत्मिक रस से वंचित रहना किसी क्रोधित ऋषि के श्राप भोगने जैसा है !