शङ्ख का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- यद्यपि उनका रूप भयंकर है , तथापि वे रूप, सौभाग्य, कान्ति एवं महती सम्पदा की अधिष्ठान (प्राप्तिस्थान) हैं॥4॥ वे अपने हाथों में खड्ग, बाण, गदा, शूल, चक्र, शङ्ख, भुशुण्डि, परिघ, धनुष तथा जिससे रक्त चूता रहता है, ऐसा कटा हुआ मस्तक धारण करती हैं॥5॥ ये महाकाली भगवान् विष्णु की दुस्तर माया हैं।
- यद्यपि उनका रूप भयंकर है , तथापि वे रूप, सौभाग्य, कान्ति एवं महती सम्पदा की अधिष्ठान (प्राप्तिस्थान) हैं॥4॥ वे अपने हाथों में खड्ग, बाण, गदा, शूल, चक्र, शङ्ख, भुशुण्डि, परिघ, धनुष तथा जिससे रक्त चूता रहता है, ऐसा कटा हुआ मस्तक धारण करती हैं॥5॥ ये महाकाली भगवान् विष्णु की दुस्तर माया हैं।
- अब उनके दाहिनी ओर के निचले हाथों से लेकर बायीं ओर के निचले हाथों तक में क्रमश : जो अस्त्र हैं, उनका वर्णन किया जाता है॥10॥ अक्षमाला, कमल, बाण, खड्ग, वज्र, गदा, चक्र, त्रिशूल, परशु, शङ्ख, घण्टा, पाश, शक्ति दण्ड, चर्म (ढाल), धनुष, पानपात्र और कमण्डलु- इन आयुधों से उनकी भुजाएँ विभूषित हैं।
- घण्टा , शूल, हल, शङ्ख, मुसल, चक्र, धनुष और बाण धारण करती हैं, शरद् ऋतु के शोभासम्पन्न चन्द्रमा के समान जिनकी मनोहर कान्ति है, जो तीनों लोकों की आधारभूता और शुम्भ आदि दैत्यों का नाश करनेवाली हैं तथा गौरी के शरीर से जिनका प्राकट्य हुआ है, उन महासरस्वती देवी का मैं निरन्तर भजन करता हूँ।
- वशिष्ठ , याज्ञवल्क्य , अत्रि , विश्वामित्र , व्यास , शुकदेव , दधीचि , वाल्मीकि , च्यवन , शङ्ख , लोमश , जाबालि , उद्दालक , वैशम्पायन , दुर्वासा , परशुराम , पुलस्त्य , दत्तात्रेय , अगस्त्य , सनतकुमार , कण्व , शौनक आदि ऋषियों के जीवन वृत्तान्तों से स्पष्ट है कि उनकी महान् सफलताओं का मूल हेतु गायत्री ही थी।
- वशिष्ठ , याज्ञवल्क्य , अत्रि , विश्वामित्र , व्यास , शुकदेव , दधीचि , वाल्मीकि , च्यवन , शङ्ख , लोमश , जाबालि , उद्दालक , वैशम्पायन , दुर्वासा , परशुराम , पुलस्त्य , दत्तात्रेय , अगस्त्य , सनतकुमार , कण्व , शौनक आदि ऋषियों के जीवन वृत्तान्तों से स्पष्ट है कि उनकी महान् सफलताओं का मूल हेतु गायत्री ही थी।
- शञ्ख , बिलकुल नहीं . देखिये बोलने में मुँह से शङ्ख ही निकलेगा . ' ' जब बोलने में निकला तो वैसे ही लिखा क्यों नहीं ? ' आपका प्वाइण्ट बिलकुल सही है . ' ' तो फिर ये बिन्दीवाला क्या करे , कहाँ जायेगा . ? ' जानती हूँ , उससे ये लोग पहले से चिढ़े बैठे हैं . '
- हाथ में शङ्ख , चक्र और गदा धारण करने वाली हे महालक्षि्म! तुम्हें प्रणाम है॥1॥ गरुडपर आरूढ हो कोलासुर को भय देने वाली और समस्त पापों को हरने वाली हे भगवति महालक्षि्म! तुम्हें प्रणाम है॥2॥ सब कुछ जानने वाली, सबको वर देने वाली, समस्त दुष्टों को भय देने वाली और सबके दु:खों को दूर करने वाली, हे देवि महालक्षि्म! तुम्हें नमस्कार है॥3॥ सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली हे मन्त्रपूत भगवति महालक्षि्म! तुम्हें सदा प्रणाम है॥4॥ हे देवि! हे आदि-अन्त-
- परो दिवा पर एना पृथिव्यैतावती महिना संबभूव॥8॥ अर्थ : - जो सिंह की पीठ पर विराजमान हैं, जिनके मस्तक पर चन्द्रमा का मुकुट है, जो मरकतमणि के समान कान्तिवाली अपनी चार भुजाओं में शङ्ख, चक्र, धनुष और बाण धारण करती हैं, तीन नेत्रों से सुशोभित होती हैं, जिनके भिन्न-भिन्न अङ्ग बाँधे हुए बाजूबंद, हार, कङ्कण, खनखनाती हुई करधनी और रुनझुन करते हुए नूपुरों से विभूषित हैं तथा जिनके कानों में रत्नजटित कुण्डल झिलमिलाते रहते हैं, वे भगवती दुर्गा हमारी दुर्गति दूर करने वाली हों।
- इसके सिवा महर्षि अगस्त्य , वसिष्ठ , नारद , शुक , व्यास आदि तथा वाल्मीकि मुनि अपने-अपने चित्त में जो वेदमन्त्रों के उच्चारण का विचार करते हैं , उनकी वह मन : सङ्कल्पित वेदध्वनि तुम्हारे आनन्द की वृद्धि करे॥ 16 ॥ स्वर्ग के आँगन में वेणु , मृदङ्ग , शङ्ख तथा भेरी की मधुर ध्वनि के साथ जो संगीत होता है तथा जिसमें अनेक प्रकार के कोलाहल का शब्द व्याप्त रहता है , वह विद्याधरी द्वारा प्रदर्शित नृत्य-कला तुम्हारे सुख की वृद्धि करे॥ 17 ॥ देवि !