सन-सन का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- उसने कलम के पिछले हिस् से से कान के ऊपर खुजलाया , खूब आँखें गड़ाकर जमा और खर्च के खानों को देखने की कोशिश की , लेकिन बस नस-नस में सन-सन करती कोई चीज दौड़े जा रही थी।
- हो शास्त्रों का झन-झन-निनाद , दन्तावल हों चिंग्घार रहे , रण को कराल घोषित करके हों समरशूर हुङकार रहे , कटते हों अगणित रुण्ड-मुण्ड, उठता होर आर्त्तनाद क्षण-क्षण , झनझना रही हों तलवारें; उडते हों तिग्म विशिख सन-सन .
- हठकर बैठा चांद एक दिन माता से यह बोला सिलवा दे मुझे भी ऊन का मोटा एक झिंगोला सन-सन चलती हवा रात भ् ार जाड़े में मरता हूं ठिठुर ठिठुर कर किसी तरह से यात्रा पूरी करता हूं
- दो बार उसने गुरुजी से यह प्रश्न किया भी था परन्तु उन्होंने यही कह कर टाल दिया कि बच्चा , ईश्वर की महिमा कोई बड़ा भारी और बलवान घोड़ा है , जो इतनी गाडियों को सन-सन खींचे लिए जाता है।
- रोते समय फव्वारे-सी होती हैं सहमी हों तो बिल्ली से डरे कबूतर जैसी खामोश होती हैं तो सरोवर में शांत पानी-सी लगती हैं गुनगुनाती हैं तो हौले-हौले बहती बयार की ‘ सन-सन ' बन जाती हैं बेचैन होती हैं दरिया के वेग-सी लगती हैं ख़रमस्तियाँ करते हुए समुन्दर की लहरें बन जाती हैं
- हठकर बैठा चांद एक दिन माता से यह बोला सिलवा दे मुझे भी ऊन का मोटा एक झिंगोला सन-सन चलती हवा रात भ्ार जाड़े में मरता हूं ठिठुर ठिठुर कर किसी तरह से यात्रा पूरी करता हूं यह कविता यूपी की प्राइमरी क्लासों में लगी थी कभी , आज लगती है या नहीं, पता नहीं।
- हठ कर बैठा चांद एक दिन , माता से यह बोला सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला सन-सन चलती हवा रात भर जाड़े से मरता हूँ ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही को भाड़े का बच्चे की सुन बात , कहा माता ने ‘
- तेज हवा की सन-सन सुर लहरी पर उड़ती खड़खड़ाती ये पत्तियां रहस्यमय पंचम ( हाई औक्टेव) सुर साध लेती हैं और चारो तरफ कुशल नृत्यांगनाओं-सी थिरकती-फिसलती कोना-कोना ढकती गिर पड़ती हैं, मानो प्रकृति का स्वान-सौंग गा रही हों (कहते हैं कि हंसों को अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो जाता है और हंसिनी के वियोग से दुखी हंस, मरने से पहले बहुत ही सुन्दर व अति मार्मिक अंतिम नृत्य करता है )।
- तेज हवा की सन-सन सुर लहरी पर उड़ती खड़खड़ाती ये पत्तियां रहस्यमय पंचम ( हाई औक्टेव ) सुर साध लेती हैं और चारो तरफ कुशल नृत्यांगनाओं-सी थिरकती-फिसलती कोना-कोना ढकती गिर पड़ती हैं , मानो प्रकृति का स्वान-सौंग गा रही हों ( कहते हैं कि हंसों को अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो जाता है और हंसिनी के वियोग से दुखी हंस , मरने से पहले बहुत ही सुन्दर व अति मार्मिक अंतिम नृत्य करता है ) ।
- ओ शल्य ! हयों को तेज करो , ले चलो उड़ाकर शीघ्र वहां , गोविन्द-पार्थ के साथ डटे हों चुनकर सारे वीर जहां . ” ” हो शास्त्रों का झन-झन-निनाद , दन्तावल हों चिंग्घार रहे , रण को कराल घोषित करके हों समरशूर हुङकार रहे , कटते हों अगणित रुण्ड-मुण्ड , उठता होर आर्त्तनाद क्षण-क्षण , झनझना रही हों तलवारें ; उडते हों तिग्म विशिख सन-सन . ” ” संहार देह धर खड़ा जहां अपनी पैंजनी बजाता हो , भीषण गर्जन में जहां रोर ताण्डव का डूबा जाता हो .