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साहसहीन का अर्थ

साहसहीन अंग्रेज़ी में मतलब

उदाहरण वाक्य

  1. 14 . प्रखरता ( साहस एवं पराक्रम ) - सज्जनता , नम्रता , उदारता आदि सद्गुणों की जितनी प्रशंसा की जाय उतनी ही कम है , पर साथ ही यह भी ध्यान रखा जाय कि प्रखरता के बिना यह विशेषताएँ भी अपनी उपयोगिता खो बैठती है और लोग सज्जन को मुर्ख , दब्बू , चापलूस , साहसहीन , भोला एवं दयनीय समझने लगते हैं।
  2. 14 . प्रखरता ( साहस एवं पराक्रम ) - सज्जनता , नम्रता , उदारता आदि सद्गुणों की जितनी प्रशंसा की जाय उतनी ही कम है , पर साथ ही यह भी ध्यान रखा जाय कि प्रखरता के बिना यह विशेषताएँ भी अपनी उपयोगिता खो बैठती है और लोग सज्जन को मुर्ख , दब्बू , चापलूस , साहसहीन , भोला एवं दयनीय समझने लगते हैं।
  3. 39 ) ज्ञान के कठिनमार्ग पर चलते वक्त आपके सामने जब भारी कष्ट एवं दुख आयें तब आप उसे सुख समझो क्योंकि इस मार्ग में कष्ट एवं दुख ही नित्यानंद प्राप्त करने में निमित्त बनते है | अतः उन कष्टों, दुखों और आघातों से किसी भी प्रकार साहसहीन मत बनो, निराश मत बनो | सदैव आगे बढ़ते रहो | जब तक अपने सत्यस्वरूप को यथार्थ रूप से न जान लो, तब तक रुको नहीं
  4. 39 ) ज्ञान के कठिनमार्ग पर चलते वक्त आपके सामने जब भारी कष्ट एवं दुख आयें तब आप उसे सुख समझो क्योंकि इस मार्ग में कष्ट एवं दुख ही नित्यानंद प्राप्त करने में निमित्त बनते है | अतः उन कष्टों , दुखों और आघातों से किसी भी प्रकार साहसहीन मत बनो , निराश मत बनो | सदैव आगे बढ़ते रहो | जब तक अपने सत्यस्वरूप को यथार्थ रूप से न जान लो , तब तक रुको नहीं |
  5. - मेरे देखते ही देखते वह समाज-भवन ढहने लगा | भगवान राम और कृष्ण , कर्ण और युधिष्टर , बुद्ध और चंद्रगुप्त का समाज इतना निर्बल , पंगु , साहसहीन , निर्लज्ज और मूढ़ निकलेगा ; - यह विचारातीत था | पर मैंने देखा उसका चतुर्मुखी पतन उन आँखों से जिनसे कभी विश्व-विजय , वैभव-विलास और सर्वोत्कर्ष के सुखद युग देख चुका था | मैं लज्जित हूँ ; कुछ भी नहीं कर सका | कायर की भांति मैंने अपने शत्रुओं को कोसना आरम्भ किया | मैं तिलमिला उठा पर क्रोध से नहीं , वेदना से |
  6. - मेरे देखते ही देखते वह समाज-भवन ढहने लगा | भगवान राम और कृष्ण , कर्ण और युधिष्टर , बुद्ध और चंद्रगुप्त का समाज इतना निर्बल , पंगु , साहसहीन , निर्लज्ज और मूढ़ निकलेगा ; - यह विचारातीत था | पर मैंने देखा उसका चतुर्मुखी पतन उन आँखों से जिनसे कभी विश्व-विजय , वैभव-विलास और सर्वोत्कर्ष के सुखद युग देख चुका था | मैं लज्जित हूँ ; कुछ भी नहीं कर सका | कायर की भांति मैंने अपने शत्रुओं को कोसना आरम्भ किया | मैं तिलमिला उठा पर क्रोध से नहीं , वेदना से |
  7. वही नारी जो वैदिक युग में देवी थी धीरे धीरे अपने पद से नीचे खिसकने लगी मध्यकाल में जब सामन्तवादी युग आया तो दुर्बल लोगो का शोषण किया जाने लगा उसके लिए जंगली कानून बने और उसी कानून में नारी भी आगई नारी जाती को सामूहिक रूप से हे पतित अनधिकारी बताया गया उसी विचारधारा ने नारी के मूल अधिकारों पर प्रतिबंध लगा कर पुरूष को हर जगह बेहतर बता कर उसको इतना शक्तिहीन विद्याहीन साहसहीन कर दिया कि नारी समाज के लिए तो क्या उपयोगी सिद्ध होती अपनी आत्मरक्षा के लिए भी पुरूष पर निर्भर हो गई ।
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